#कॉपी_पेस्ट
हिंदू धर्म में सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाया जाता है क्या यह विचारधारा ही उसके पतन का कारण है । क्या इस विचारधारा को ठेस पहुंचाने में कोई कसर रखा जाता है जब किसी को धर्म निरपेक्ष को बरगला कर उसे अन्य धर्म में परिवर्तित करना । हमें लगता है इस भोली भाली विचारधारा खत्म करने वाले को भगवान सद्बुद्धी दे ।
अब आगे
कल किसी काम से अचानक उज्जैन जाना हुआ। रास्ते में मुझे बहुत ही अजीब सा दृश्य दिखा। एक जगह लिखा हुआ था मसीही मंदिर चर्च। मुझे समझ नहीं आया। बाद में मैंने इंटरनेट पर जानकारी खंगाली तो पता चला कि भारत में इस तरह के कई मसीही मंदिर चर्च देशभर में तेजी से खुल रहे हैं। रोचक बात यह रही कि दुनिया में कहीं भी मुझे मसीही मस्जिद चर्च नहीं मिला।
इसके बाद कई दोस्तों से बात की जो इन विषयों पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। बातचीत में पता चला कि भारत में सफेदपोश धर्मांतरण का यह एक नायाब तरीका है। ग्रामीण क्षेत्रों में धर्मांतरण की गतिविधियों के दौरान मिशनरीज को यह समझ आया कि हमें भारत में अपने काम करने का तौर तरीका बदलना चाहिए। इससे न सिर्फ धर्मांतरण में तेजी आएगी बल्कि कोई हमारे ऊपर अंगुली भी नहीं उठा पाएगा। जब आप किसी को कहते हैं कि चलो चर्च चलते हैं तो वह संकोच करेगा या फिर मना भी कर सकता है। जब आप उसे कहेंगे कि चलो मसीही मंदिर चलते हैं तो वह तुरंत चला जाएगा। यह एक सोच है धीरे धीरे आपको किसी दूसरे धर्म से जोड़ने की। किसी भी धर्म से जुडऩे में कोई बुराई नहीं है और मैं खुद कहता हूं कि यदि आपको खुद कोई धर्म बेहतर लगे तो आप उसके अनुयायी बन सकते हैं। मुझे आपत्ति यहां पर प्लानिंग के साथ धर्मांतरण करने पर है। क्यों दुनिया के कुछ धर्म दूसरे धर्म के लोगों को बरगलाने फुसलाने में लगे रहते हैं। इस मसीही मंदिर चर्च में आने वाले लोगों की भीड़ देखिए। यह पुरानी फोटो है और इस तरह की सैकड़ों फोटो आपको मिल जाएंगी। यहां आने वाले सभी लोग या तो हिंदू हैं या फिर धर्मांतरित हिंदू। दुनिया में शायद हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसके खिलाफ आप कुछ भी कर सकते हैं। आप दुनिया में कहीं भी एक मसीही मस्जिद चर्च बनाकर दिखाइए। आपको समझ आ जाएगा कि आप क्या कर रहे हैं।
कई लोगों से बातचीत के बाद मुझे यह भी पता चला कि आदिवासी और वनवासी क्षेत्रों में जहां लोग चर्च में जाना पसंद नहीं करते वहां इन मसीही मंदिर चर्च में एक नई शुरुआत की गई है। इन मसीही मंदिरों में उनके स्थानीय त्योहार मनाए जाते हैं और उनके बहाने लोगों को वहां बुलाया जाता है। सही बात भी है। आपने एक बढिय़ा मंच दे दिया। यहां खानपान है, व्यवस्थाएं हैं, साजिश की बू में लपेटा हुआ प्रेम है और इसके साथ और भी बहुत कुछ है। कोई गांव वाला क्यों वहां अपना त्योहार मनाने नहीं जाएगा।
एक पहलू तो यह भी है कि हिंदूओं ने खुद अपने धर्म को लावारिस छोड़ रखा है। इस तरह की कोई व्यवस्था या सोच पनप ही नहीं सकी जो हर हिंदू को इस बात का अहसास दिला सके कि तुम्हारे साथ कोई भी परेशानी आएगी तो समाज तुम्हारे साथ खड़ा होगा। जब आप किसी को लावारिस छोड़ देंगे तो वह वहीं जाएगा जहां उसे प्यार मिलेगा।
Aisa to bahut dekhane ko milne laga hai
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