ये वो हनुमान थे जिसने कलयुग में सनातन धर्म की जड़ो को फिर से सींचने का काम किया। स्व. श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी जिन्होंने #गीता_प्रेस_गोरखपुर की स्थापना की ओर कलयुग में सनातन हिन्दुओ के घर घर मे वैदिक धर्म ग्रंथों, शास्त्रौ को पहुचाने का काम किया। आज हिन्दुओ के घर मे जो सनातन शास्त्र पहुच रहे है वो स्व श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की देन है। वास्तव में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी हनुमान ही थे जब हिन्दू समाज अपने ज्ञान , विज्ञान, गौरव को भुल अंग्रेजी सभ्यता का दास बन रहा था, तब इन्होंने हनुमान की भांति संजीवनी रुपी #गीता_प्रेस_गोरखपुर (सनातन शक्तिपुंज) की स्थापना कर जो सनातनियों को जड़ से जोड़े रखने का भगीरथी प्रयास किया । उसके लिए हिन्दू समाज हमेशा इनका ऋणी रहेगा। ऐसे धर्मरक्षक महावीरो को नई पीढ़ी द्वारा भूलना सिर्फ गलती नही महापाप होगा। इन लोगो ने अभावो में रहकर भी कैसे संस्थान खड़े किए होंगे जो सम्पूर्ण विश्व मे वैदिक धर्म ग्रंथ शास्त्र पहुचाने वाले सबसे बडे हिन्दू संस्थान बनकर उभरे। न पैसा न संसाधन फिर भी हिंदू समाज की आने वाली पीढ़ियों तक शास्त्रो का अमर ज्ञान पहुचाने के लिए अपना सबकुछ वार दिया। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे महापुरुषों के द्वारा ही वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ज्ञान पहुंचाने वाली ऋषि परम्परा जीवित है। जो समाज अपने इतिहास और महापुरुषों को भुल जाते है वो समाज कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है , इसलिए हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे धर्म रक्षक धर्मात्माओ को कभी मत भूलो ये ही सनातन धर्म के इस अक्षय वृक्ष की जड़ है। कोटि कोटि नमन 🙏🙏
सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय
खाली समय में कुछ भुले बिसरे पलों को याद करना और उसको लेखनी से सभी तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। सभी लोगों को खुश देखना और उसके चेहरे पर मधुर मुस्कान लाने की कोशिश करते रहते हैं। सभी स्वस्थ रहें मस्त रहे यही कल्पना करता हूं।
Wednesday 29 March 2023
Friday 2 September 2022
जातिवाद और हम भारतीय
भारत मे कभी छुआछुत था रहा ही नहीं प्राचीन समय से ना जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
और भी बहुत से प्रमाण है जो हमें जाति में नही ज्ञान विज्ञान में तेज़ और भारतीय होने का गौरव बढ़ाती हैं
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं।
Thursday 31 March 2022
गांधी जी और बकरी का दुध
अंग्रे में एक शब्द है "एक्सपेंसिव पावर्टी" इसका मतलब होता है कि गरीब दिखने के लिए आपको बहुत खर्चा करना पड़ता है। गांधी की गरीबी ऐसी ही थी।
एक बार सरोजनी नायडू ने उनको मज़ाक में कहा भी था कि "आप को गरीब रखना हमको बहुत महंगा पड़ता है!!"
ऐसा क्यों?
गांधी जब भी तीसरे दर्जे में रेल सफर करते थे तो वह सामान्य तीसरा दर्जा नहीं होता था।
अंग्रेज नहीं चाहते थे की गांधी की खराब हालातों में, भीड़ में यात्रा करती हुई तस्वीरें अखबारों में छपे उनको विक्टिम कार्ड का फायदा मिले। इसलिए जबकि वह रेल सफर करते थे तो उनको विशेष ट्रेन देते थे जिसमें कुल 3 डिब्बे होते थे जो सिर्फ गांधी और उनके साथियों के लिए होते थे, क्योंकि हर स्टेशन पर लोग उनसे मिलने आते थे।
इस सब का खर्चा बाद में गांधी के ट्रस्ट की ओर से अंग्रेज सरकार को दे दिया जाता था। इसीलिए एक बार मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था की जितने पैसो में मैं प्रथम श्रेणी यात्रा करता हूं उस से कई गुना में गांधी तृतीय श्रेणी की यात्रा करते हैं।
गांधी ने प्रण लिया था कि वह सिर्फ बकरी का दूध पिएंगे। बकरी का दूध आज भी महंगा मिलता है तब भी महंगा ही था। अपने आश्रम में तो बकरी पाल सकते थे, पर गांधी तो बहुत घूमते थे।ज़रूरी नही की हर जगह बकरी का दूध आसानी से मिलता ही हो। इस बात के वर्णन खुद गांधी की किताबों में है कैसे लंदन में बकरी का दूध ढूंढा जाता था, महंगे दामों में खरीदा जाता था क्योंकि गांधी गरीब थे,वो सिर्फ बकरी का दूध ही पीते थे। ये बात अलग है कि खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि गांधी ने दूध के लिए जो बकरियां पाली थी,उनको रोज़ साबुन से नहलाया जाता था, उनको प्रोटीन खिलाये जाते थे। उनपर 20 रुपये प्रतिदिन का खर्च होता था। 90 साल पहले 20 रुपये मतलब आज हज़ारों रुपये !!
बाकी खर्च का तो ऐसा है कि गांधी अपने साथ एक दानपात्र रखते थे जिसमें वह सभी से कुछ न कुछ धनराशि डालने का अनुरोध करते थे। इसके अलावा कई उद्योगपति उनके मित्र उनको चंदा देते थे। उनका एक ट्रस्ट था जो गांधी के नाम पर चंदा इकट्ठा करता था। उनके 75 वें जन्मदिन पर 75 लाख रुपए का चंदा जमा करने का लक्ष्य था, पर एक करोड़ से ज्यादा जमा हुए।सोने के भाव के हिसाब से तुलना करें तो आज के 650 करोड़ रुपये हुए।
गांधी उतने गरीब भी नहीं थे,जितना बताया जाता है।
Friday 4 March 2022
सम्राट अशोक महान क्यों नहीं
सम्राट अशोक की जन्म जयंती हमारे देश में नहीं मनाई जाती ?
बहुत सोचने पर भी उत्तर नहीं मिलता! आप भी इन प्रश्नों पर विचार करें!
१. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं;
*२. जिस सम्राट का राज चिन्ह "अशोक चक्र" भारतीय अपने ध्वज में लगते है;*
*३. जिस सम्राट का राज चिन्ह "चारमुखी शेर" को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाते हैं, और "सत्यमेव जयते" को अपनाया है;*
*४. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर "अशोक चक्र" दिया जाता है;*
*५. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो;*
*६. सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे! इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे;*
*७. जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं !*
*८. जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी;*
*९. जिस सम्राट के शासन काल में सबसे प्रख्यात महामार्ग "ग्रेड ट्रंक रोड" जैसे कई हाईवे बने, २,००० किलोमीटर लंबी पूरी सडक पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायीं गईं, मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए, पशुओं को मारना बंद करा दिया गया;*
*१०. ऐसे महान सम्राट अशोक, जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है ?*
*दुख: है कि जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं, और जो जानते हैं वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते;*
*तथ्य निम्नलिखित हैं:~*
*जन्म 4 मार्च*
*जन्म वर्ष ३०२ ई पू*
*राजतिलक - २६८ ई पू*
*देहावसान - २३२ ई पू*
*पिताजी का नाम - बिन्दुसार*
*माताजी का नाम - सुभद्राणी*
*११. "जो जीता वही चंद्रगुप्त" ना होकर "जो जीता वही सिकन्दर" कैसे हो गया…?*
*जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था! बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था! और वापस लौटना पड़ा था !*
*कृपया अपने सभी समुहों में भेजने का कष्ट करें और हम सब मिल कर बाक़ी साथियों को भी जागरूक करें!*
*आइए मिल कर इस ऐतिहासिक भूल को सही करने का हर संभव प्रयास करें ..*
*प्रयास करें कि अपने संस्थान में आगामी 4 मार्च सम्राट अशोक*
*जन्मदिन के रूप में सम्मान व उत्साह के साथ मनाया जाए !*
Tuesday 4 January 2022
ब्राह्मण वंशावली (गोत्र प्रवर परिचय)
ब्राह्मणों की वंशावली
ज्ञान वर्षा
सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है।
काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं। एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए। सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : गर्ग (शुक्ल- वंश) गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं। उपगर्ग (शुक्ल-वंश): उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
(१)बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। गौतम (मिश्र-वंश): गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। उप गौतम (मिश्र-वंश): उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है। वत्स गोत्र (मिश्र- वंश): *वत्स ऋषि* के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) *पयासी* (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है। कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश): तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है।
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी वशिष्ठ गोत्र (मिश्र-वंश): इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है। (१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश) शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं। (१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है।
इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है। उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश): इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं।
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश): भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है| (१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर। भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश): भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें। सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है। सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश) सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी) सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश) सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
Wednesday 29 December 2021
कन्यादान
#मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है।
कोई बहुत शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकता है।
स्वयं को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने की होड़ में भी कुछ लोग मूर्खताएँ करते हैं। #एक IAS अधिकारी हैं !!
जिनकी मीडिया में बड़ी #वाहवाही हो रही है कि उन्होंने अपने विवाह में पिता को अपना #कन्यादान करने से रोक दिया।
कहा कि मैं दान की वस्तु नहीं हूँ।
कुछ दिन पहले ऐसा ही ज्ञान ‘मान्यवर’ कंपनी के विज्ञापन में आलिया भट्ट द्वारा दिलाया गया था।
मानो कन्यादान कोई सामाजिक बुराई है!!!
लेकिन वे नहीं जानते कि इस परंपरा का अर्थ क्या है?
हिंदू विवाह के कुल 22 चरण होते हैं।
कन्यादान इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। अग्नि को साक्षी मानकर लड़की का पिता/अभिभावक अपनी बेटी के गोत्र का दान करता है। इसके बाद बेटी अपने पिता का गोत्र छोड़कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है।
कन्यादान का यह अर्थ नहीं कि ऐसा करके पिता बेटी को दान कर देता है। कन्यादान हर पिता का धार्मिक कर्तव्य है। इस दौरान जो मंत्रोच्चार होता है उसमें पिता होने वाले दामाद से वचन लेता है कि आज से वह उसकी बेटी की सभी ख़ुशियों का ध्यान रखेगा।
ऐसी भावुक और हृदयस्पर्शी रस्म को भी वामपंथी मूर्खता का शिकार बनाया जा रहा है।
इन मूर्ख संस्कारहीनों को नहीं पता कि हिंदू धर्म के विवाह मंत्रों की रचना किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि विदूषी सूर्या सावित्री ने की थी।
कन्यादान को लेकर मूर्खतापूर्ण अभियान चलाने वालों की बुद्धि पर तरस खाइए और चिंता कीजिए कि ऐसे IAS-IFS अधिकारी और उनकी मूर्खता पर वाह-वाह करने वाला मीडिया देश, समाज और धर्म का कितना अहित कर रहे हैं!!!
इसी तरह की बहुत सी बातों के लिए मीडिया हिंदू धर्म को अपमानित करने की कोशिश करता रहता है। इसलिए सभी सनातन धर्मी हिंदुओं से विनम्र अनुरोध है कि वे तथाकथित मीडिया को अपना आदर्श ना मानें, एवं विद्वानों के चरणों में बैठकर धर्म और अध्यात्म की शिक्षा ग्रहण करना प्रारंभ करें... तभी जाकर इस तरह की गलतफहमियों को दूर किया जा सकेगा...
आशा है कि आप मेरे इस अनुरोध को सार्थक समर्थन प्रदान करेंगे...धन्यवाद
Monday 23 August 2021
वेद के विषय मे जानकारी
ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो सके आपका आभार धन्यवाद होगा
*ग्रंथ* *रचियता*
1-अष्टाध्यायी पाणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्र कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम्गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
*वेद-ज्ञान:-*
प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद - ऐतरेय
2 - यजुर्वेद - शतपथ
3 - सामवेद - तांड्य
4 - अथर्ववेद - गोपथ
प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद - आयुर्वेद
2- यजुर्वेद - धनुर्वेद
3 -सामवेद - गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद - अर्थवेद
प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर - छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद - अग्नि
2 - यजुर्वेद - वायु
3 - सामवेद - आदित्य
4 - अथर्ववेद - अंगिरा
प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद - ज्ञान
2- यजुर्वेद - कर्म
3- सामवे - उपासना
4- अथर्ववेद - विज्ञान
प्र.13- वेदों में।
ऋग्वेद में।
1- मंडल - 10
2 - अष्टक - 08
3 - सूक्त - 1028
4 - अनुवाक - 85
5 - ऋचाएं - 10589
यजुर्वेद में।
1- अध्याय - 40
2- मंत्र - 1975
सामवेद में।
1- आरचिक - 06
2 - अध्याय - 06
3- ऋचाएं - 1875
अथर्ववेद में।
1- कांड - 20
2- सूक्त - 731
3 - मंत्र - 5977
प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल भी नहीं।
प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।
प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर- ऋग्वेद।
प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।
प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।
प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
पंच महायज्ञ
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ
स्वर्ग - जहाँ सुख है।
नरक - जहाँ दुःख है।.
*#भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!!!!!
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
*🔱19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,
🙏जय जय श्री राम 🙏
श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी
ये वो हनुमान थे जिसने कलयुग में सनातन धर्म की जड़ो को फिर से सींचने का काम किया। स्व. श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी जिन्होंने #गीता_प्रेस_...
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ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो सके आपका आभार धन्यवाद होगा *ग्रंथ* *...
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अंग्रे में एक शब्द है "एक्सपेंसिव पावर्टी" इसका मतलब होता है कि गरीब दिखने के लिए आपको बहुत खर्चा करना पड़ता है। गांधी की गरीबी ऐ...
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हमारे एक ब्राह्मण मित्र ने.....एक ब्राह्मण की कहानी - (सत्य घटना) ... भेजी जो ब्राह्मणों के सामने नत-मस्तक होने पर मजबूर करती है...... कहान...