Saturday, 19 September 2020

🌹 गुफ़्तगू 🌹


उसने कहा- बेवजह ही 

खुश हो क्यों?

मैंने कहा- हर वक्त 

दुखी भी क्यों रहूँ !


उसने कहा- जीवन में  

बहुत गम हैं, 

मैंने कहा -गौर से देख,

खुशियां भी कहाँ कम हैं। 


उसने तंज़ किया - 

ज्यादा हँस मत, 

नज़र लग  जाएगी, 

मेरा ठहाका बोला- 

मेरी हँसी देख कर ही, 

फिसल जाएगी। 


उसने कहा- नहीं होता

क्या तनाव कभी ?

जवाब दिया- मैंने ऐसा 

तो कहा नहीं!


उसकी हैरानी बोली- 

फिर भी यह हँसी? 

मैंने कहा-डाल ली आदत

हर घड़ी मुसकुराने की! 


फिर तंज़ किया-अच्छा!!

बनावटी हँसी, इसीलिए 

परेशानी दिखती नहीं। 

मैंने कहा- 

अटूट विश्वास है, 

प्रभु मेरे साथ है, 

फिर चिंता-परेशानी की

क्या औकात है। 

कोई मुझसे "मैं दुखी हूँ"

सुनने को बेताब था, 

इसलिए प्रश्नों का 

सिलसिला भी 

बेहिसाब था


पूछा - कभी तो 

छलकते होंगे आँसू ?

मैंने कहा-अपनी 

मुसकुराहटों से बाँध 

बना लेती हूँ,

अपनी हँसी कम पड़े तो 

कुछ और लोगों को 

हँसा देती हूँ ,

कुछ बिखरी ज़िंदगियों में

उम्मीदें जगा देती हूँ...

यह मेरी मुसकुराहटें 

दुआऐं हैं उन सबकी

जिन्हें मैंने तब बाँटा, 

जब मेरे पास भी 

कमी थी।

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