Wednesday, 29 December 2021

कन्यादान

 #मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है। 


कोई बहुत शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकता है।


 स्वयं को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने की होड़ में भी कुछ लोग मूर्खताएँ करते हैं। #एक IAS अधिकारी हैं !!

जिनकी मीडिया में बड़ी #वाहवाही हो रही है कि उन्होंने अपने विवाह में पिता को अपना #कन्यादान करने से रोक दिया। 

कहा कि मैं दान की वस्तु नहीं हूँ। 


कुछ दिन पहले ऐसा ही ज्ञान ‘मान्यवर’ कंपनी के विज्ञापन में आलिया भट्ट द्वारा दिलाया गया था। 


मानो कन्यादान कोई सामाजिक बुराई है!!!


लेकिन वे नहीं जानते कि इस परंपरा का अर्थ क्या है? 


हिंदू विवाह के कुल 22 चरण होते हैं। 

कन्यादान इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। अग्नि को साक्षी मानकर लड़की का पिता/अभिभावक अपनी बेटी के गोत्र का दान करता है। इसके बाद बेटी अपने पिता का गोत्र छोड़कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है। 


कन्यादान का यह अर्थ नहीं कि ऐसा करके पिता बेटी को दान कर देता है। कन्यादान हर पिता का धार्मिक कर्तव्य है। इस दौरान जो मंत्रोच्चार होता है उसमें पिता होने वाले दामाद से वचन लेता है कि आज से वह उसकी बेटी की सभी ख़ुशियों का ध्यान रखेगा। 


ऐसी भावुक और हृदयस्पर्शी रस्म को भी वामपंथी मूर्खता का शिकार बनाया जा रहा है। 


इन मूर्ख संस्कारहीनों को नहीं पता कि हिंदू धर्म के विवाह मंत्रों की रचना किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि विदूषी सूर्या सावित्री ने की थी। 


कन्यादान को लेकर मूर्खतापूर्ण अभियान चलाने वालों की बुद्धि पर तरस खाइए और चिंता कीजिए कि ऐसे IAS-IFS अधिकारी और उनकी मूर्खता पर वाह-वाह करने वाला मीडिया देश, समाज और धर्म का कितना अहित कर रहे हैं!!!


इसी तरह की बहुत सी बातों के लिए मीडिया हिंदू धर्म को अपमानित करने की कोशिश करता रहता है। इसलिए सभी सनातन धर्मी हिंदुओं से विनम्र अनुरोध है कि वे तथाकथित मीडिया को अपना आदर्श ना मानें, एवं विद्वानों के चरणों में बैठकर धर्म और अध्यात्म की शिक्षा ग्रहण करना प्रारंभ करें... तभी जाकर इस तरह की गलतफहमियों को दूर किया जा सकेगा... 

आशा है कि आप मेरे इस अनुरोध को सार्थक समर्थन प्रदान करेंगे...धन्यवाद

Monday, 23 August 2021

वेद के विषय मे जानकारी

 ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा

     *ग्रंथ*               *रचियता*

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                  वाल्मीकि

3-महाभारत                 वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                 पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र     नागार्जुन

7-बुद्धचरित                 अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र              वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्        कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां     कालिदास

15-मेघदूत                 कालिदास

16-रघुवंशम्               कालिदास

17-मालविकाग्निमित्र  कालिदास

18-नाट्यशास्त्र            भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम      विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता             बरामिहिर

23-पंचतंत्र।              विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस           विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी           राजशेखर

39-काव्यमीमांसा        राजशेखर

40-नवसहसांक चरित  पदम्गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो     चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित       सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र


*वेद-ज्ञान:-*


प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।


प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।


प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।


प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण  के लिए।


प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद


प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद              ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -     शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ


प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                     उपवेद

    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद


प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष


प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद                ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा


प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।


प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।


प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान


प्र.13-  वेदों में।


ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589


यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975


सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875


अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

          

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।


प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।


प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।


प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।


प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 


प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।


प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।


प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।


प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर ।


प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र


प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 


पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   

स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.


*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!


भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।


*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।


*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।


*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।


*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।


*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।


*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।


*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 


*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।


*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।


*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।


*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।


*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।


*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।


*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।


*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।


*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।


रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।


तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।


जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।


रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।


*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।


*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।


*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।


*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।


*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।


*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।


*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।


*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।


*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।


*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।


*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।


*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।


*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।


*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।


*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।


 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।


*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।


*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।


*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।


*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,


  🙏जय जय श्री राम 🙏

Wednesday, 7 July 2021

विवाह विच्छेद

अंत तक ज़रूर पढ़े...


  विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है 

#Divorce (अंग्रेजी) 

#तलाक (उर्दू) 

#कृपया_हिन्दी_का_शब्द_बताए... ??


कहानी *आजतक* के Editor *संजय सिन्हा की लिखी है...।* 


तब मैं *जनसत्ता* में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि... एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी...। 

मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि... *"पति ने अपनी बीवी को मार डाला"...!* खबर छप गई...किसी को आपत्ति नहीं थी...। पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए... *प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी* सीढ़ी के पास मिल गए। मैंने उन्हें नमस्कार किया.. तो कहने लगे कि *"संजय जी... पति की बीवी नहीं होती...!"*


*“पति की... 'बीवी' नहीं होती ?”* मैं चौंका था

 *“बीवी" तो... शौहर की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है... ! "*


भाषा के मामले में... प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था... हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि... *"भाव तो साफ है न ?"* बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... *"भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"*


खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरे साथ... निधि के पास चलना होगा...।


निधि... मेरी दोस्त है..., कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था...। फोन पर उसकी आवाज़ से... मेरे मन में खटका हो चुका था कि... कुछ न कुछ गड़बड़ है...! मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।


मैंने पूछा कि... "नितिन कहां है... ?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"


निधि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम नितिन को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि संजय सिन्हा आए हैं...!"


निधि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे... ?!!!


अज़ीब सँकट था...! निधि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... नितिन से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... संजय सिन्हा... निधि के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए... !


खैर..., निधि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो...  मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।


अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी... !!


नितिन मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम निधि से... तलाक लेना चाहते हो... ?!!!


उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"


मैंने कहा कि... *"तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"*


*“क्यों... ???*


*“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है... !”*


*"अरे यार..., हमने शादी तो... की है... !"*


*“हाँ..., 'शादी' की है... ! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं.... !!!"*


मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... *रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है... !* वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...


मैंने फिर निधि से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं... ?!!!"


निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं... ! मैंने यही सवाल नितिन से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं... ?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं... !"


मैंने तुरंत टोका... *"ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं... ! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं... ! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है... ! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है... !* तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है... ! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा... !"


बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... निधि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"


मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो... !"


उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है... ?!!!"


मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन का रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"


“हां तो.... ?!!!"


“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... (कन्यादान)जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों... ! *लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप हो जाते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...!* अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं... ?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे... ?!!! नहीं होंगे..., *हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"*


यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं... ???"


दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... *"दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है... ! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो... ! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना... !!"*


*अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी... !*


निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"


वो कॉफी लाने गई..., मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... *बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।*


खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... निधि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"


लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!


मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... *"अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा... !"*


शायद अब दोनों समझ चुके थे.....


#हिन्दी_एक_भाषा_ही_नहीं-संस्कृति_है... !


इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है... !!


उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा..., जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है...। आप सभी से निवेदन है कि... समय निकाल कर इसे पढ़ें..., गौर करें..., अच्छा लगे तो... आप अपने मित्रों... व आपके पास जो भी ग्रुप हैं... उनमें प्रेषित करे...।  

#साभार..

Tuesday, 29 June 2021

चंद्रशेखर आज़ाद और सदाशिव राव

 “अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“ 

जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, 


“नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।

उस बुजुर्ग औरत का नाम था जगरानी देवी और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनिया उसे आजाद ... जी हाँ ! चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।


हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी।


अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माता उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं। लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी। 


शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही।

चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था। अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दासमाहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।


मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।


देश के लिए बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों के परिवारों की ऐसी ही गाथा है ।।



मै नमन करता उन वीर योद्धा को तथा  उस वीर निर्भीक क्रान्तिकारी को जन्म देने वाली माँ को 

Thursday, 17 June 2021

चंपतराय कौन हैं

 


चंपतराय कौन हैं- जानें


जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव रामजी के अनन्य भक्त श्री चम्पत राय!!


1975 इँदिरा गाँधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर एस एम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय बंसल, बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे,

तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे।

अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है।

 पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।


प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये में बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा।

पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे अतः वे लौट गए।

 क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर चंपत राय घर पहुँचे,

माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।


18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना और राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।


चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ दिया और राम काज में जुट गए।

वे अवध के गाँव गाँव गये हर द्वार खटखटाया।

 स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी।

अयोध्या के हर गली कूँचे ने चंपत राय को और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया।

उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें "अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया" उपनाम से बुलाने लगे।


बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर "डॉक्यूमेंटल एविडेंस" जुटाने प्रारम्भ किये।

लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया,

साथ ही हर जानकारी उंन्हे कंठस्थ भी हो गई।

के परासरण और अन्य साथी वैद्यनाथन आदि वकील जब जन्म भूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।


6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे।

तमाम निर्देश दिए जा रहे थे।

बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं,

उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे।

एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा "अब क्या होगा?"

 उन्होंने हँस कर उत्तर दिया "ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी...

ये जो करने आयी है करके ही जाएगी".


इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और...

इतिहास रचा गया। आदरणीय चंपत राय बंसल को यूंही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है।

उन्होंने रामलला के श्री चरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया है।

 प्यार से उन्हें लोग

"राम लला का पटवारी" भी कहते हैं।

यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है।

यह मुंह फाड़ करके बकवास करने वाले कोई कायर नहीं।


बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याणसिंह जी के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है।

चम्पत राय जी कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे"।


Friday, 11 June 2021

मेढ़क की गर्मी

 आप एक प्रयोग कीजिये, एक भगौने में पानी डालिये और उसमे एक मेढक छोड़ दीजिये । फिर उस भगौने को आग में गर्म कीजिये । जैसे जैसे पानी गर्म होने लगेगा, मेढक पानी की गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को तापमान के अनकूल सन्तुलित करने लगेगा ।

मेढक बढ़ते हुए पानी के तापमान के अनकूल अपने को ढालता चला जाता है और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि जब पानी उबलने की कगार पर पहुँच जाता है । इस अवस्था में मेढक के शरीर की सहनशक्ति जवाब देने लगती है और उसका शरीर इस तापमान को अनकूल बनाने में असमर्थ हो जाता है । अब मेढक के पास उछल कर, भगौने से बाहर जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा होता है और वह उछल कर, खौलते पानी से बाहर निकले का निर्णय करता है ।

मेढक उछलने की कोशिश करता है, लेकिन उछल नहीं पाता है। उसके शरीर में अब इतनी ऊर्जा नहीं बची है कि वह छलांग लगा सके, क्योंकि उसकी सारी ऊर्जा तो पानी के बढ़ते हुए तापमान को अपने अनुकूल बनाने में ही खर्च हो चुकी है ।

कुछ देर हाथ पाँव चलाने के बाद, मेढक पानी में मरणासन्न पलट जाता है और फिर अंत में मर जाता है ।

यह मेढक आखिर मरा क्यों ?

सामान्य जनमानस का वैज्ञानिक उत्तर यही होगा की उबलते पानी ने मेढक की जान ले ली है लेकिन यह उत्तर गलत है ।

सत्य यह है की मेढक की मृत्यु का कारण, उसके द्वारा उछल कर बाहर निकलने के निर्णय को लेने में हुयी देरी थी । वह अंत तक गर्म होते माहौल में अपने को ढाल कर सुरक्षित महसूस कर रहा था । उसको यह एहसास ही नहीं हुआ था, कि गर्म होते हुए पानी के अनुकूल बनने के प्रयास ने, उसको एक आभासी सुरक्षा प्रदान की हुयी है । अंत में उसके पास कुछ ऐसा नहीं बचता कि वह इस गर्म पानी का प्रतिकार कर सके और उसमें ही खत्म हो जाता है ।

मुझे इस कहानी में जो दर्शन मिला है वह यह कि यह कहानी मेढक की नहीं है, यह कहानी 'हिन्दू' की है ।

यह कहानी, सेकुलर प्रजाति द्वारा हिन्दू को दिए गए आभासी सुरक्षा कवच की है ।

यह कहानी, अपने सेकुलरी वातावरण में ढल कर, सुकून की ज़िन्दगी जीते रहने की, हिन्दू के छद्म विश्वास की है ।

यह कहानी, अहिंसा, शांति और दूसरों की भावनाओं के लिहाज़ को प्राथिमकता देने में, उचित समय में निर्णय न लेने की है ।

यह कहानी, सेकुलरों के बुद्धजीवी ज्ञान, 'मेढक पानी के उबलने से मरा है' को मनवाने की है ।

यह कहानी, धर्म के आधार पर हुए बंटवारे के बाद, उद्वेलित समाज के अनकूल ढलने के विश्वास पर, वहाँ रुक गए हिन्दुओं के अस्तित्व के समाप्त होने की है ।

यह कहानी, कश्मीरियत का अभिमान लिए कश्मीरी पण्डितों की कश्मीर से खत्म होने की है ।

यह कहानी, सेकुलरों द्वारा हिन्दू को मेढक बनाये रखने की है ।

यह कहानी, आपके अस्तिव को आपके बौद्धिक अहंकार से ही खत्म करने की है ।

लेकिन यह एक नई कहानी भी कहती है, यह मेरे द्वारा मेढक बनने से इंकार की भी कहानी है !

मेरी कहानी, आपकी भी हो सकती है, यदि आप, आज यह निर्णय करें कि अब इससे ज्यादा गर्म पानी हम बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं ।

मेरी कहानी, आपकी भी हो सकती है, यदि आप, आज जातिवाद, क्षेत्रवाद, आरक्षण और ज्ञान के अहंकार को तज करके, मेढक से हिन्दू बनने को तैयार हैं ।

आइये! थामिये, एक दूसरे का हाथ और उछाल मार कर और बाहर निकल आइये, इस मृत्युकारक सेक्युलरि सडांध के वातावरण से और वसुंधरा को अपनी नाद से गुंजायमान कीजिये–

'हम हिन्दू हैं! हम भारत हैं! हम ज़िंदा हैं!' किसी बुद्धि जीवी व्यक्ति का बहुत अच्छा लेख है।

पीएम मोदीजी को इतनी नफ़रत व विरोध का सामना कोन कर रहा है ।

नया आधार लिंक कराने से महाराष्ट्र में 10 लाख गरीब गायब हो गए!


उत्तरखण्ड में भी कई लाख फ़र्ज़ी बीपीएल कार्ड धारी गरीब ख़त्म हो गए !


तीन करोड़ (30000000 ) से जायदा फ़र्ज़ी एलपीजी कनेक्शन धारक ख़त्म हो गए !


मदरसों से वज़ीफ़ा पाने वाले 1,95,000 फर्ज़ी बच्चे गायब हो गए!


डेढ़ करोड़ (15000000 ) से ऊपर फ़र्ज़ी राशन कार्ड धारी गायब हो गए!


ये सब क्यों और कहाँ गायब होते जा रहे हैं !


चोरो का सारा काला चिटठा खुलने वाला है …इसीलिए  सारे चोर ने मिलकर माननीय सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर कर दी कि आधार लिंक हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है ! चोरों  को  प्राइवेसी का कैसा अधिकार!


1) कंपनी के MD :मोदी ने फर्जी 3 लाख से ज्यादा कम्पनियां  बन्द कर दी है!


2) राशऩ डीलर नाराज़ हो गये!


3) Property Dealer नाराज़ हो गये!


4)ऑनलाइन सिस्टम बनने से दलाल नाराज़ हो गये है!


5) 40,000 फर्जी NGO बन्द हो गये है, इसलिए इन  NGO के मालिक भी नाराज़ हो गये !


6) No 2 की Income से Property खरीद ने वाले नाराज़ हो गये!


7) E-Tender  होने से कुछ ठेकेदार भी नाराज़ हो गये!


8) गैस कंपनी वाले नाराज़ हो गये!


9) अब तक जो 12 करोड लोग  Income टैक्स के दायरे मै आ चुके हैं वह लोग नाराज़ हो गये!

10) GST सिस्टम लागू होने से ब्यापारी लोग नाराज़ हो गये, क्योकि वो लोग Automatic सिस्टम मै आ गये है!


11) वो 2 नम्बर  के काम बाले लोग फलना फूलना बन्द हो गये है!


13) Black को White करने का सिस्टम एक दम से लुंज सा हो गया है।


14) आलसी सरकरी अधिकारी नाराज हो गये, क्योकि समय पर जाकर काम करना पड रहा हैं!


15) वो लोग नाराज हो गये, जो समय पर काम नही करते थे और रिश्वत देकर काम करने मे विश्वास  करते है।

16) 10 रुपये महीना  का कमरा और 300 रु महीना मै खाना खाने वाला 7 साल तक मुफ्त की रोटी तोड़ने वाला JNU का छात्र भी परेशान है मोदी से😀😀


दुख होना लाज़मी है देश बदलाव की कहानी लिखी जा रही है,  जिसे समझ आ रही है बदल रहा है जिसे नही आ रही है वो  मंदबुध्दि युवराज के *मानसिक गुलाम* हमे अंधभक्त कह कह कर छाती कूट रहे है!


💥 अगर"देश के लिए"कुछ करना है, तो यह सन्देश -30 लोगों को भेजना है। थे


💥 बस - आपको तो एक कड़ी जोड़नी है, देखते ही देखते,"पूरा देश" जुड़ जायेगा।!

पराजय--एक कहानी

 

    जिला शिक्षा अधिकारी बनने के बाद जब ज्वाइन किया..तो जानकारी हुई की ये जिला ..स्कूली शिक्षा के लिहाज से बहुत पिछड़ा हुआ हैं...वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कहा आप ग्रामीण इलाकों पर विशेष ध्यान दें..

    बस तय कर लिया..महीने में आठ दस दिन जरूर ग्रामीण स्कूलों को दूंगा..

        शीघ्र ही..ग्रामीण इलाकों में दौरों का सिलसिला चल निकला..पहाड़ी व जंगली इलाका भी था कुछ..

    एक दिन मातहत कर्मचारियों से मालूम हुआ..

  "बड़ेरी " नामक गांव, जो एक पहाड़ी पर स्थित है..वहां के स्कूल में कोई शिक्षा अधिकारी नहीं जाता था क्योंकि वहां पहुंचने के लिए.. वाहन छोड़कर..लगभग दो तीन किलोमीटर जंगली रास्ते से पैदल ही जाना होता था ..

       तय कर लिया अगले दिन वहां जाया जाए..

वहां कोई ,मिस्टर  पी. के. व्यास हेड मास्टर थे.. जो बरसों से, पता नहीं क्यूं.. वहीं जमे हुए थे..! मैंने निर्देश दिए उन्हें कोई अग्रिम सूचना न दी जाय..सरप्राइज विजिट होगी..!

   अगले दिन हम सुबह निकले.. दोपहर बारह बजे..ड्राइवर ने कहा साहब यहां से आगे..पहाड़ी पर पैदल ही जाना होगा दो तीन किलोमीटर..

      मै और दो अन्य कर्मचारी पैदल ही चल पड़े..

लगभग डेढ़ घंटे सकरे..पथरीले जंगली रास्ते से होकर हम ऊपर गांव तक पहुंचे..सामने स्कूल का पक्का भवन था..और लगभग दो  सौ कच्चे पक्के मकान थे..

    स्कूल साफ सुथरा और व्यवस्थित रंगा पुता हुआ था..बस तीन कमरे और प्रशस्त बरामदा..चारों तरफ सुरम्य हरा भरा वन..

      अंदर क्लास रूम में पहुंचे तो तीन कक्षाओं में लगभग सवा सौ बच्चे तल्लीनता पूर्वक पढ़ रहे थे.. हालांकि शिक्षक कोई भी नहीं था..एक बुजुर्ग सज्जन बरामदे में थे जो वहां नियुक्त पियून थे.शायद...

     उन्होंने बताया हेड मास्टर साहब आते ही होंगे..

 हम बरामदे में बैठ गए थे..तभी देखा एक चालीस बयालीस वर्ष के सज्जन..अपने दोनो हाथो में पानी की बाल्टियां लिए ऊपर चले आ रहे थे..पायजामा घुटनों तक चढ़ाया हुआ था..ऊपर खादी का कुर्ता जैसा था..!

      उन्होंने आते ही परिचय दिया.. मैं प्रशांत व्यास यहां हेड मास्टर हूं..। यहां इन दिनों ..बच्चों के लिए पानी, थोड़ा नीचे जाकर कुंए से लाना होता है..हमारे चपरासी दादा..बुजुर्ग हैं अब उनसे नहीं होता..इसलिए मै ही लेे आता हूं..वर्जिश भी हो जाती है..वे मुस्कुराकर बोले..

   उनका चेहरा पहचाना सा लगा और नाम भी..

मैंने उनकी और देखकर पूछा..तुम प्रशांत व्यास हो..इंदौर से.. गुजराती कॉलेज..!

      मैंने हेट उतार दिया था.. उसने कुछ पहचानते हुए .. चहकते हुए कहा..आप अभिनव.. हैं, अभिनव श्रीवास्तव..! मैंने कहा और नहीं तो क्या.. भई..!

       लगभग बीस बाईस बरस पहले हम इंदौर में साथ ही पढ़े थे..बेहद होशियार और पढ़ाकू था  वो..बहुत कोशिश करने के बावजूद शायद ही कभी उससे ज्यादा नंबर आए हों.. मेरे..!

         एक प्रतिस्पर्धा रहती थी हमारे बीच..जिसमें हमेशा वही जीता करता था..

      आज वो हेड मास्टर था और मैं..जिला शिक्षा अधिकारी.. पहली बार उससे आगे निकलने.. जीतने.. का भाव था.. और सच कहूं तो खुशी थी मन में..

       मैंने सहज होते हुए पूछा.. यहां कैसे पहुंचे.. भई..?. और कौन कौन है घर पर..? 

             उसने विस्तार से बताना शुरू किया..

  “ एम. कॉम करते समय ही बाबूजी की मालवा मिल वाली नौकरी जाती रही थी..फिर उन्हें दमे की बीमारी भी तो थी..! ..घर चलाना मुश्किल हो गया था..किसी तरह पढ़ाई पूरी की.. नम्बर अच्छे  थे.. इसलिए संविदा शिक्षक की नियुक्ति मिल गई थी..जो छोड़ नहीं सकता था..आगे पढ़ने की न गुंजाइश थी न स्थितियां..इस गांव में पोस्टिंग मिल गई..मां बाबूजी को  लेकर यहां चला आया..सोचा गांव में कम पैसों में गुजारा हो ही जायेगा..!"

       फिर उसने हंसते हुए कहा.. “इस दुर्गम गांव में पोस्टिंग..और वृद्ध.. बीमार मां बाप को देख..कोई लड़की वाले लड़की देने तैयार नहीं हुए..इसलिए विवाह नहीं हुआ..और ठीक भी है.. कोई पढ़ी लिखी लड़की  भला यहां क्या करती..! 

         अपनी कोई पहुंच या पकड़ भी नहीं थी कि यहां से ट्रांसफर करा पाते..तो बस यहीं जम गए..यहां आने के कुछ बरस बाद..मां बाबूजी दोनों ही चल बसे..

  यथा संभव उनकी सेवा करने का प्रयास किया..

अब यहां बच्चों में..स्कूल में मन रम गया है..

  छुट्टी के दिन बच्चों को लेकर.. आस पास की पहाड़ियों पर वृक्षारोपण करने चला जाता हूं...

.. ..रोज शाम को स्कूल के बरामदे में बुजुर्गों को पढ़ा देता हूं..अब शायद इस गांव में कोई निरक्षर नहीं है..नशा मुक्ति का अभियान भी चला रक्खा है..अपने हाथों से खाना बना लेता हूं..और किताबें पढ़ता हूं.. बच्चों को अच्छी बुनियादी शिक्षा.. अच्छे संस्कार मिल जाएं..अनुशासन सीखें बस यही ध्येय है.. मै सी ए नहीं कर सका पर मेरे दो विद्यार्थी सी ए हैं..और कुछ अच्छी नौकरी में भी..।

     .. मेरा यहां कोई ज्यादा खर्च है नहीं.. मेरी ज्यादातर तनख़ा इन बच्चों के खेल कूद और स्कूल पर खर्च हो जाती हैं...तुम तो जानते हो कॉलेज के जमाने से क्रिकेट खेलने का जुनून था..! वो बच्चों के साथ खेल कर पूरा हो जाता है..बड़ा सुकून मिलता है.."

      मैंने टोकते हुए कहा...मां बाबूजी के बाद शादी का विचार नहीं आया..?

   उसने मुस्कुराते हुए कहा..“ दुनियां में सारी अच्छी चीजें मेरे लिये नहीं बनी है..

   इसलिए जो सामने है..उसी को अच्छा करने या बनाने की कोशिश कर रहा हूं.."

    फिर अपने परिचित दिलचस्प अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला.“.अरे वो फ़ैज़ साहेब की एक नज़्म में है न..! .."अपने बेख्वाब किवाड़ों को मुकफ्फल कर लो..अब यहां कोई नहीं..कोई नहीं आएगा.."

      उसकी उस बेलौस हंसी ने भीतर तक भिगो दिया था..

    लौटते हुए मैंने उससे कहा..प्रशांत तुम जब चाहो तुम्हारा ट्रांसफर मुख्यालय या जहां तुम चाहो करा दूंगा..

      उसने मुस्कुराते हुए कहां..अब बहुत देर हो चुकी है.जनाब.. अब यहीं इन लोगों के बीच खुश हूं..कहकर उसने हाथ जोड़ दिए..

      मेरी अपनी उपलब्धियों से उपजा दर्प..उससे आगे निकल जाने का अहसास..भरम.. चूर चूर हो गया था..

    वो अपनी जिंदगी की तमाम कमियों.. तकलीफों..असुविधाओं के बावजूद सहज था. उसकी कर्तव्यनिष्ठा देखकर.. मै हतप्रभ था ..जिंदगी से..किसी शिकवे या.. शिकायत की कोई झलक उसके व्यवहार में...नहीं थी..

    सुखसुविधाओं..उपलब्धियों.. ओहदों के आधार पर हम लोगों का मूल्यांकन करते हैं..लेकिन वो इन सब के बिना मुझे फिर पराजित कर गया था..!

  लौटते समय उस कर्म ऋषि को हाथ जोड़कर..भरे मन से इतना ही कह सका..तुम्हारे इस पुनीत कार्य में कभी मेरी जरूरत पड़े तो जरूर याद करना मित्र.                

                                      जीवन दर्शन  


 आपका प्रशासनिक  औहोदा क्या था या क्या है यह कोई महत्व नहीं रखता यदि आप एक अच्छे इंसान नहीं बन पाए

Sunday, 6 June 2021

डाकू अस्थिमाल

"#कर्म_से_बदल_जाते_हैं_भाग्य"

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प्रकृत्य ऋषि का रोज का  नियम था कि वह नगर से दूर जंगलों में स्थित शिव मन्दिर में भगवान् शिव की पूजा में लीन रहते थे। कई वर्षो से यह उनका अखण्ड नियम था।


उसी जंगल में एक नास्तिक डाकू अस्थिमाल का भी डेरा था। अस्थिमाल का भय आसपास के क्षेत्र में व्याप्त था। अस्थिमाल बड़ा नास्तिक था। वह मन्दिरों में भी चोरी-डाका से नहीं चूकता था।


एक दिन अस्थिमाल की नजर प्रकृत्य ऋषि पर पड़ी। उसने सोचा यह ऋषि जंगल में छुपे मन्दिर में पूजा करता है, हो न हो इसने मन्दिर में काफी माल छुपाकर रखा होगा। आज इसे ही लूटते हैं।


अस्थिमाल ने प्रकृत्य ऋषि से कहा कि जितना भी धन छुपाकर रखा हो चुपचाप मेरे हवाले कर दो। ऋषि उसे देखकर तनिक भी विचलित हुए बिना बोले- कैसा धन ? मैं तो यहाँ बिना किसी लोभ के पूजा को चला आता हूँ।


डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा। ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया। रक्त की धारा फूट पड़ी।


इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्थिमाल के सामने गिरीं। अस्थिमाल अट्टहास करते हुए बोला तू ऋषि होकर झूठ बोलता है। 


झूठे ब्राह्मण तू तो कहता था कि यहाँ कोई धन नहीं फिर ये सोने के सिक्के कहाँ से गिरे। अब अगर तूने मुझे सारे धन का पता नहीं बताया तो मैं यहीं पटक-पटकर तेरे प्राण ले लूँगा।


प्रकृत्य ऋषि करुणा में भरकर दुखी मन से बोले - हे शिवजी मैंने पूरा जीवन आपकी सेवा पूजा में समर्पित कर दिया फिर ये कैसी विपत्ति आन पड़ी ? प्रभो मेरी रक्षा करें। जब भक्त सच्चे मन से पुकारे तो भोलेनाथ क्यों न आते।


महेश्वर तत्क्षण प्रकट हुए और ऋषि को कहा कि इस होनी के पीछे का कारण मैं तुम्हें बताता हूँ। यह डाकू पूर्वजन्म में एक ब्राह्मण ही था। इसने कई कल्पों तक मेरी भक्ति की। परन्तु इससे प्रदोष के दिन एक भूल हो गई। 


यह पूरा दिन निराहार रहकर मेरी भक्ति करता रहा। दोपहर में जब इसे प्यास लगी तो यह जल पीने के लिए पास के ही एक सरोवर तक पहुँचा। संयोग से एक गाय का बछड़ा भी दिन भर का प्यासा वहीं पानी पीने आया। तब इसने उस बछड़े को कोहनी मारकर भगा दिया और स्वयं जल पीया। 


इसी कारण इस जन्म में यह डाकू हुआ। तुम पूर्वजन्म में मछुआरे थे। उसी सरोवर से मछलियाँ पकड़कर उन्हें बेचकर अपना जीवन यापन करते थे। जब तुमने उस छोटे बछड़े को निर्जल परेशान देखा तो अपने पात्र में उसके लिए थोड़ा जल लेकर आए। उस पुण्य के कारण तुम्हें यह कुल प्राप्त हुआ।


पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण इसका आज राजतिलक होने वाला था पर इसने इस जन्म में डाकू होते हुए न जाने कितने निरपराध लोगों को मारा व देवालयों में चोरियां की इस कारण इसके पुण्य सीमित हो गए और इसे सिर्फ ये कुछ मुद्रायें ही मिल पायीं।


तुमने पिछले जन्म में अनगिनत मत्स्यों का आखेट किया जिसके कारण आज का दिन तुम्हारी मृत्यु के लिए तय था पर इस जन्म में तुम्हारे संचित पुण्यों के कारण तुम्हें मृत्यु स्पर्श नहीं कर पायी और सिर्फ यह घाव देकर लौट गई।


ईश्वर वह नहीं करते जो हमें अच्छा लगता है, ईश्वर वह करते हैं जो हमारे लिए सचमुच अच्छा है। यदि आपके अच्छे कार्यों के परिणाम स्वरूप भी आपको कोई कष्ट प्राप्त हो रहा है तो समझिए कि इस तरह ईश्वर ने आपके बड़े कष्ट हर लिए।


हमारी दृष्टि सीमित है परन्तु ईश्वर तो लोक-परलोक सब देखते हैं, सबका हिसाब रखते हैं। हमारा वर्तमान, भूत और भविष्य सभी को जोड़कर हमें वही प्रदान करते हैं जो हमारे लिए उचित है।

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Wednesday, 2 June 2021

ब्राह्मण का जनेऊ

 


हमारे एक ब्राह्मण मित्र ने.....एक ब्राह्मण की कहानी - (सत्य घटना) ... भेजी जो ब्राह्मणों के सामने नत-मस्तक होने पर मजबूर करती है...... कहानी पसन्द आये तो 100 लोगों तक पहुंचाने की दक्षिणा देने को ही कर्तव्य समझें सभी पाठक गण। 


 *ऐसे होते हैं ब्राह्मण संस्कार....*

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*ब्राह्मण के घर से खाली हाथ कैसै जाएंगे......*

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पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए ले आये थे ।


संयोग से मैं उनके ठीक पीछे लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया) हुआ जनेऊ हनुमान जी को पहनाना चाहते हैं, पुजारी ने जनेऊ तो ले लिया पर पहनाया नहीं।


जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है इसके लिए बड़े पुजारी (महन्थ) जी से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें वो आते ही होगें । 


मैं उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था, जिज्ञासा वश मैं भी महन्थ जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।


थोड़ी देर बाद जब महन्त जी आए तो पुजारी ने उस ब्राह्मण के आग्रह के बारे में बताया तो महन्थ जी ने ब्राह्मण की ओर देख कर कहा कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी जाए । आप चाहें तो यह जनेऊ हनुमान जी को चढ़ाकर प्रसाद रूप में ले लीजिए । 


इस पर उस ब्राह्मण ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं देख रहा हूँ कि भगवान ने पहले से ही जनेऊ धारण कर रखा है परन्तु कल रात्रि में चन्द्रग्रहण लगा था और वैदिक नियमानुसार प्रत्येक जनेऊ धारण करने वाले को ग्रहणकाल के उपरांत पुराना बदलकर नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए बस यही सोच कर सुबह सुबह मैं हनुमान जी की सेवा में यह ले आया था प्रभु को यह प्रिय भी बहुत है । 


हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि - "हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे" ।


अब महन्थ जी थोड़ी सोचनीय मुद्रा में बोले कि हम लोग बाजार का जनेऊ नहीं लेते हनुमान जी के लिए शुद्ध जनेऊ बनवाते हैं, आपके जनेऊ की क्या शुद्धता है?


इस पर वह ब्राह्मण बोले कि प्रथम तो यह कि ये कच्चे सूत से बना है, इसकी लम्बाई 96 चउवा (अंगुल) है, पहले तीन धागे को तकली पर चढ़ाने के बाद तकली की सहायता से नौ धागे तेहरे गये हैं, इस प्रकार 27 धागे का एक त्रिसुत है जो कि पूरा एक ही धागा है कहीं से भी खंडित नहीं है, इसमें प्रवर तथा गोत्रानुसार प्रवर बन्धन है तथा अन्त में ब्रह्मगांठ लगा कर इसे पूर्ण रूप से शुद्ध बनाकर हल्दी से रंगा गया है और यह सब मेंने स्वयं अपने हाथ से गायत्री मंत्र जपते हुए किया है ।


ब्राह्मण देव की जनेऊ निर्माण की इस व्याख्या से मैं तो स्तब्ध रह गया मन ही मन उन्हें प्रणाम किया, मेंने देखा कि अब महन्त जी ने उनसे संस्कृत भाषा में कुछ पूछने लगे, उन लोगों का सवाल - जबाब तो मेरे समझ में नहीं आया पर महन्त जी को देख कर लग रहा था कि वे ब्राह्मण के जबाब से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं अब वे उन्हें अपने साथ लेकर हनुमान जी के पास पहुँचे जहाँ मन्त्रोच्चारण कर महन्त व अन्य 3 पुजारियों के सहयोग से हनुमान जी को ब्राह्मण देव ने जनेऊ पहनाया तत्पश्चात पुराना जनेऊ उतार कर उन्होंने बहते जल में विसर्जन करने के लिए अपने पास रख लिया । 


मंदिर तो मैं अक्सर आता हूँ पर आज की इस घटना ने मन पर गहरी छाप छोड़ दी, मेंने सोचा कि मैं भी तो ब्राह्मण हूं और नियमानुसार मुझे भी जनेऊ बदलना चाहिए, उस ब्राह्मण के पीछे-पीछे मैं भी मंदिर से बाहर आया उन्हें रोककर प्रणाम करने के बाद अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे भी एक जोड़ी शुद्ध जनेऊ की आवश्यकता है, तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तो वह बस हनुमान जी के लिए ही ले आये थे हां यदि आप चाहें तो मेरे घर कभी भी आ जाइएगा घर पर जनेऊ बनाकर मैं रखता हूँ जो लोग जानते हैं वो आकर ले जाते हैं । 


मैंने उनसे उनके घर का पता लिया और प्रणाम कर वहां से चला आया, शाम को उनके घर पहुंचा तो देखा कि वह अपने दरवाजे पर तखत पर बैठे एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं , गाड़ी से उतरकर मैं उनके पास पहुंचा मुझे देखते ही वो खड़े हो गए, और मुझसे बैठने का आग्रह किया अभिवादन के बाद मैं बैठ गया, बातों बातों में पता चला कि वह अन्य व्यक्ति भी पास का रहने वाला ब्राह्मण है तथा उनसे जनेऊ लेने आया है ।


ब्राह्मण अपने घर के अन्दर गए इसी बीच उनकी दो बेटियाँ जो क्रमश: 12 वर्ष व 8 वर्ष की रही होंगी एक के हाथ में एक लोटा पानी तथा दूसरी के हाथ में एक कटोरी में गुड़ तथा दो गिलास था, हम लोगों के सामने गुड़ व पानी रखा गया, मेरे पास बैठे व्यक्ति ने दोनों गिलास में पानी डाला फिर गुड़ का एक टुकड़ा उठा कर खाया और पानी पी लिया तथा गुड़ की कटोरी मेरी ओर खिसका दी, पर मेंने पानी नहीं पिया कारण आप सभी लोग जानते होंगे कि हर जगह का पानी कितना दूषित हो गया है कि पीने योग्य नहीं होता है घर पर आर.ओ. लगा है इसलिए ज्यादातर आर.ओ. का ही पानी पीता हूँ बाहर रहने पर पानी की बोतल खरीद लेता हूँ। 


इतनी देर में ब्राह्मण अपने घर से बाहर आए और एक जोड़ी जनेऊ उस व्यक्ति को दिए, जो पहले से बैठा था उसने जनेऊ लिया और 21 रुपए ब्राह्मण को देकर चला गया 


मैं अभी वहीं रुका रहा इस ब्राह्मण के बारे में और अधिक जानने का कौतुहल मेरे मन में था, उनसे बात-चीत में पता चला कि वह संस्कृत से स्नातक हैं नौकरी मिली नहीं और पूँजी ना होने के कारण कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाए, घर में बृद्ध मां पत्नी दो बेटियाँ तथा एक छोटा बेटा है, एक गाय भी है ।


वे बृद्ध मां और गौ-सेवा करते हैं, विशिष्ट यज्ञों की यजमानी करते हैं पर साधारणतया यजमानी से दूर रहते हैं, जनेऊ बनाना उन्होंने अपने पिता व दादा जी से सीखा है यह भी उनके गुजर-बसर में सहायक है । 


इसी बीच उनकी बड़ी बेटी पानी का लोटा वापस ले जाने के लिए आई किन्तु अभी भी मेरी गिलास में पानी भरा था उसने मेरी ओर देखा लगा कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हों कि मेंने पानी क्यों नहीं पिया, मेंने अपनी नजरें उधर से हटा लीं, वह पानी का लोटा गिलास वहीं छोड़ कर चली गयी शायद उसे उम्मीद थी की मैं बाद में पानी पी लूंगा ।


अब तक मैं इस परिवार के बारे में काफी है तक जान चुका था और मेरे मन में दया के भाव भी आ रहे थे, खैर ब्राह्मण ने मुझे एक जोड़ी जनेऊ दिया, तथा कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया और कहा कि जनेऊ पहनते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करूं -- ।


मैंने सोच समझ कर 500 रुपए का नोट ब्राह्मण की ओर बढ़ाया तथा जेब और पर्स में एक का सिक्का तलाशने लगा, मैं जानता था कि 500 रुपए एक जोड़ी जनेऊ के लिए बहुत अधिक है पर मैंने सोचा कि इसी बहाने इनकी थोड़ी मदद हो जाएगी । 


ब्राह्मण हाथ जोड़ कर मुझसे बोले कि श्रीमंत 500 सौ का फुटकर तो मेरे पास नहीं है, मेंने कहा अरे फुटकर की आवश्यकता नहीं है आप पूरा ही रख लीजिए तो उन्हें कहा नहीं बस मुझे मेरी मेहनत भर का 21 रूपए दे दीजिए, मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि गरीब होने के बावजूद वो लालची नहीं हैं, पर मेंने भी पांच सौ ही देने के लिए सोच लिया था इसलिए मैंने कहा कि फुटकर तो मेरे पास भी नहीं है, आप संकोच मत करिए पूरा रख लीजिए आपके काम आएगा 

 


उन्होंने कहा अरे नहीं मैं संकोच नहीं कर रहा आप इसे वापस रखिए जब कभी आपसे दुबारा मुलाकात होगी तब 21रू. दे दीजिएगा । 


इस ब्राह्मण ने तो मेरी आँखें नम कर दीं उन्होंने कहा कि शुद्ध जनेऊ की एक जोड़ी पर 13-14 रुपए की लागत आती है 7-8 रुपए अपनी मेहनत का जोड़कर वह 21 रू. लेते हैं कोई-कोई एक का सिक्का न होने की बात कह कर बीस रुपए ही देता है ।


मेरे साथ भी यही समस्या थी मेरे पास 21रू. फुटकर नहीं थे, मेंने पांच सौ का नोट वापस रखा और सौ रुपए का एक नोट उन्हें पकड़ाते हुए बड़ी ही विनम्रता से उनसे रख लेने को कहा तो इस बार वह मेरा आग्रह नहीं टाल पाए और 100 रूपए रख लिए और मुझसे एक मिनट रुकने को कहकर घर के अन्दर गए, बाहर आकर और चार जोड़ी जनेऊ मुझे देते हुए बोले मेंने आपकी बात मानकर सौ रू. रख लिए अब मेरी बात मान कर यह चार जोड़ी जनेऊ और रख लीजिए ताकी मेरे मन पर भी कोई भार ना रहे । 


मैंने मन ही मन उनके स्वाभिमान को प्रणाम किया साथ ही उनसे पूछा कि इतना जनेऊ लेकर मैं क्या करूंगा तो वो बोले कि मकर संक्रांति, पितृ विसर्जन, चन्द्र और सूर्य ग्रहण, घर पर किसी हवन पूजन संकल्प परिवार में शिशु जन्म के सूतक आदि अवसरों पर जनेऊ बदलने का विधान है, इसके अलावा आप अपने सगे सम्बन्धियों रिस्तेदारों व अपने ब्राह्मण मित्रों को उपहार भी दे सकते हैं जिससे हमारी ब्राह्मण संस्कृति व परम्परा मजबूत हो साथ ही साथ जब आप मंदिर जांए तो विशेष रूप से गणेश जी, शंकर जी व हनूमान जी को जनेऊ जरूर चढ़ाएं... उनकी बातें सुनकर वह पांच जोड़ी जनेऊ मेंने अपने पास रख लिया और खड़ा हुआ तथा वापसी के लिए विदा मांगी, तो उन्होंने कहा कि आप हमारे अतिथि हैं पहली बार घर आए हैं हम आपको खाली हाथ कैसे जाने दे सकते हैं?


इतना कह कर उनहोंने अपनी बिटिया को आवाज लगाई वह बाहर निकाली तो ब्राह्मण देव ने उससे इशारे में कुछ कहा तो वह उनका इशारा समझकर जल्दी से अन्दर गयी और एक बड़ा सा डंडा लेकर बाहर निकली, डंडा देखकर मेरे समझ में नहीं आया कि मेरी कैसी विदायी होने वाली है?


अब डंडा उसके हाथ से ब्राह्मण देव ने अपने हाथों में ले लिया और मेरी ओर देख कर मुस्कराए जबाब में मेंने भी मुस्कराने का प्रयास किया, वह डंडा लेकर आगे बढ़े तो मैं थोड़ा पीछे हट गया उनकी बिटिया उनके पीछे पीछे चल रह थी मेंने देखा कि दरवाजे की दूसरी तरफ दो पपीते के पेड़ लगे थे डंडे की सहायता से उन्होंने एक पका हुआ पपीता तोड़ा उनकी बिटिया वह पपीता उठा कर अन्दर ले गयी और पानी से धोकर एक कागज में लपेट कर मेरे पास ले आयी और अपने नन्हें नन्हा हाथों से मेरी ओर बढ़ा दिया उसका निश्छल अपनापन देख मेरी आँखें भर आईं, मैं अपनी भीग चुकी आंखों को उससे छिपाता हुआ दूसरी ओर देखने लगा तभी मेरी नजर पानी के उस लोटे और गिलास पर पड़ी जो अब भी वहीं रखा था इस छोटी सी बच्ची का अपनापन देख मुझे अपने पानी न पीने पर ग्लानि होने लगी, मैंने झट से एक टुकड़ा गुड़ उठाकर मुँह में रखा और पूरी गिलास का पानी एक ही साँस में पी गया, बिटिया से पूछा कि क्या एक गिलास पानी और मिलेगा वह नन्ही परी फुदकता हुई लोटा उठाकर ले गयी और पानी भर लाई, फिर उस पानी को मेरी गिलास में डालने लगी और उसके होंठों पर तैर रही मुस्कराहट जैसे मेरा धन्यवाद कर रही हो , मैं अपनी नजरें उससे छुपा रहा था पानी का गिलास उठाया और गर्दन ऊंची कर के वह अमृत पीने लगा पर अपराधबोध से दबा जा रहा था, अब बिना किसी से कुछ बोले पपीता गाड़ी की दूसरी सीट पर रखा, और घर के लिए चल पड़ा, घर पहुंचने पर हाथ में पपीता देख कर मेरी पत्नी ने पूछा कि यह कहां से ले आए तो बस मैं उससे इतना ही कह पाया कि एक ब्राह्मण के घर गया था तो उन्होंने खाली हाथ आने ही नहीं दिया ।


मैंने जीवन मे ब्राह्मण तो हज़ारों देखे थे परन्तु ब्राह्मणत्व से परिचय पहली बार हुआ और ऐसा हुआ कि मैं सारी रात सो न सका, रह-रह कर उन ब्राह्मणदेव की बातों का स्मरण मुझे होता रहा जिन्होंने मुझे एक ही दिन में न जाने कितनी शिक्षाएं देकर मेरे गुरुतुल्य हो गए।


मैंने निश्चय किया कि उनसे जाकर जनेऊ निर्माण अवश्य सीखूंगा।


सच है कि धर्म को जीना ही धर्म का वास्तविक प्रचार है, इसके बाद भाषण, उद्बोधन, संगठन आदि सब मिथ्या है।


ब्राह्मण होने के नाम... पर फरसे-डंडे-झंडे लेकर ढोल पीटने वाले ब्राह्मण -पुत्रों को अवश्य भेजें.... ये अनुरोध है।।


श्री जयमङ्गल शुक्ल जी से प्राप्त आलेख।। 

Wednesday, 26 May 2021

पद का भी एक दौर होता है

 💡फ्यूज बल्ब

(एक और बढिया बात सुनिये)


हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त (retired) हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।


एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि।


और वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।


‌एक दिन जब #सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न , कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला।


उन्होंने समझाया - आपने कभी फूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ कौन बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं । है‌ कि नहीं ?


 जब उस‌ रिटायर्ड‌ अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया‌ तो‌ बुजुर्ग बोले‌ - रिटायरमेन्ट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रूतबा‌ था‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ।


कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते‌ हुए फिर वो बुजुर्ग‌ बोले कि मै सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मै दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्मा जी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बतायी है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूँ ।


सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो‌, कोई रोशनी नहीं‌, कोई उपयोगिता नहीं; यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।


उगते सूर्य को जल चढा कर सभी पूजा करते हैं पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।


कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेन्ट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - ....... 


सक्सेना/गुर्जर/मीणा/गुप्ता/मेघवाल/चौधरी, रिटायर्ड आइ.ए.एस‌....... सिंह ...... रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि।


ये‌ रिटायर्ड IAS‌/RAS/sdm/तहसीलदार/पटवारी/बाबू/प्रोफेसर/प्रिंसिपल/अध्यापक अब कौन सा‌ पद है भाई ? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? 


अब तो‌ आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌।

 यह बात कोई मायने‌ नहीं रखती‌ कि‌ आप किस विभाग में थे‌, कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌, कितने‌ मेडल‌ आपने‌ जीते‌ हैं‌


अगर‌ कोई बात मायने‌ रखती है‌ तो वह‌ यह है कि 


आप इंसान कैसे‌ है‌?

 आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ है‌ ?

आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी

पद पर रहते हुए कितनी मदद की

समाज को क्या दिया?

ज़रूरतमंद व अपने समाज के गरीब लोगों से कैसे रिश्ता/व्यवहार रखा ?


लोग आपसे‌ डरते‌ थे‌ कि‌ आपका सम्मान करते‌ थे ?


 अगर‌ लोग आपसे डरते थे‌ तो‌ आपके‌ पद से हटते ही उनका वह‌ डर हमेशा के‌ लिए खत्म हो जाएगा। 


पर अगर लोग आप का सम्मान करते हैं तो‌ 


यह‌ सम्मान‌ आपके पद विहीन‌ होने‌ पर भी कायम रहेगा‌। आप मरने के बाद भी उनकी यादों में, उनके दिलों में जिन्दा रह सकते हैं।


हमेशा याद रखिए


 *बड़ा अधिकारी‌/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं‌, बड़ा‌ इंसान‌ बनना‌ बड़ी‌ बात जरूर है*।

      *बड़ा दिल रखिए। सदा उदार बनिए । किसी की मदद का कोई मौका मत चूकिए। कोई भेदभाव नहीं ।सब अपने ही है। इंसान बड़ा बनता है अपने कर्मो से न कि पैसे रुतबे से। यह विचारणीय है।*

*JaiGuruji*

मजबूत हृदय वीर सावरकर

 


#वीर_सावरकर --- एक कल्पना कीजिए... तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...


इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना?? जी हाँ!!! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की. यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी  (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं.


मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए. इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा...”. कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो...” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी... अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.... (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा).


अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा?? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”.


क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से यह हर किसी को नहीं मिलती।

-साभार

सकारात्मक सोच का प्रभाव

 *सकारात्मक सोच का महत्व!*_


*एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था।  ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गई। ऑटो ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते-टकराते बची।


कार चला रहा आदमी गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा जबकि गलती उसकी थी! ऑटो चालक एक सत्संगी,  सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति था। उसने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते हुए आगे बढ़ गया।


ऑटो में बैठे पैसेंजर को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा... तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया ? उसने तुम्हें भला-बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी।


हमारी किस्मत अच्छी है.... नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।


ऑटो वाले ने बहुत मार्मिक जवाब दिया...... "साहब, बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं।......


जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं। जैसे.... क्रोध, घृणा, चिंता, निराशा आदि। जब उनके दिमाग में इनका कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है.... तो, वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं।


इसलिए .....मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्करा कर अलविदा कह देता हूँ। क्योंकि ....अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा मैंने स्वीकार कर लिया..... तो, मैं भी कूड़े का ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ-साथ आसपास के लोगों पर भी वह कूड़ा गिराता रहूँगा।


मैं सोचता हूँ जिंदगी बहुत ख़ूबसूरत है। इसलिए...... जो हमसे अच्छा व्यवहार करते हैं उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते उन्हें मुस्कुरा कर भुला दो।


हमें यह याद रखना चाहिए कि सभी मानसिक रोगी केवल अस्पताल में ही नहीं रहते हैं....... कुछ हमारे आसपास खुले में भी घूमते रहते हैं!


प्रकृति के नियम*


यदि खेत में बीज न डाले जाएँ..... तो, कुदरत उसे घास-फूस से भर देती है।


उसी तरह से...... यदि दिमाग में सकारात्मक विचार न भरें जाएँ तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं।


दूसरा नियम है कि*


जिसके पास जो होता है वह वही बाँटता है।....... “सुखी” व्यक्ति सुख बाँटता है, “दुखी” व्यक्ति दुख बाँटता है, “ज्ञानी” ज्ञान बाँटता है, "भ्रमित" भ्रम बाँटता है और.... “भयभीत” भय बाँटता है। जो खुद डरा हुआ है वह औरों को डराता है, जो दबा हुआ है वह दूसरों को दबाता है।


इसलिए.... नकारात्मक लोगों से दूरी बनाकर खुद को नकारात्मकता से दूर रखें। और जीवन में सकारात्मकता अपनाएं ।

लघु कथा और एक मानसिकता

 इन पांच लघु कहानी से समझे

उपभोगवाद की हकीकत


1.

सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका।

दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया ,

तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं ,

*तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था ,*

*सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।*

अभी आते होंगे!


मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?

🤔🤔


2.

माँ का ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ा हुआ था , सो सवेरे सवेरे उन्हें लेकर उनके पुराने डॉक्टर के पास गया।

क्लिनिक से बाहर उनके गार्डन का नज़ारा दिख रहा था ,

जहां डॉक्टर साहब योग और व्यायाम कर रहे थे।

मुझे करीब 45 मिनिट इंतज़ार करना पड़ा। 

कुछ देर में डॉक्टर साहब अपना नींबू पानी लेकर क्लिनिक आये ,

और माँ का चेक-अप करने लगे।

उन्होंने मम्मी से कहा आपकी दवाइयां बढ़ानी पड़ेंगी ,

और एक पर्चे पर करीब 5 या 6 दवाइयों के नाम लिखे।

उन्होंने माँ को दवाइयां रेगुलर रूप से खाने की हिदायत दी।

बाद में मैंने उत्सुकता वश उनसे पूछा कि...

क्या आप बहुत समय से योग कर रहे हैं.?


तो उन्होंने कहा कि...

*पिछले 15 साल से वो योग कर रहे हैं ,*

*और ब्लड प्रेशर व अन्य बहुत सी बीमारियों से बचे हुए हैं!*


मैं अपने हाथ में लिए हुए माँ के उस पर्चे को देख रहा था ,

जिसमें उन्होंने BP और शुगर कम करने की कई दवाइयां लिख रखी थी.?

🤔🤔


3.

अपनी बीवी के साथ एक ब्यूटी पार्लर गया। मेरी बीवी को हेयर ट्रीटमेंट कराना था , क्योंकी उनके बाल काफी खराब हो रहे थे।

रिसेप्शन में बैठी लड़की ने उन्हें कई पैकेज बताये और उनके फायदे भी। पैकेज 1200 ₹ से लेकर 3000 ₹ तक थे।

कुछ डिस्काउंट के बाद मेरी बीवी को उन्होंने 3000 ₹ वाला पैकेज 2400 ₹ में कर दिया।

हेयर ट्रीटमेंट के समय उनका ट्रीटमेंट करने वाली लड़की के बालों से अजीब सी खुश्बू आ रही थी।

मैंने उससे पूछा कि आपने क्या लगा रखा है ,

कुछ अजीब सी खुश्बू आ रही है।


तो उसने कहा ---

*उसने तेल में मेथी और कपूर मिला कर लगा रखा है ,*

*इससे बाल सॉफ्ट हो जाते हैं और जल्दी बढ़ते हैं।*


मैं अपनी बीवी की शक्ल देख रहा था , जो 2400 रु में अपने बाल अच्छे कराने आई थी।

🤔🤔


4.

मेरी रईस कज़िन जिनका बड़ा डेयरी फार्म है, उनके फार्म पर गया।

फार्म में करीब 150 विदेशी गाय थी , जिनका दूध मशीनों द्वारा निकाल कर प्रोसेस किया जा रहा था।

एक अलग हिस्से में 2 देसी गाय हरा चारा खा रही थी।

पूछने पर बताया.. .

*उनके घर उन गायों का दूध नही आता ,* *जिनका दूध उनके डेयरी फार्म से सप्लाई होता है।*

बल्कि परिवार के इस्तेमाल के लिए ...

*इन 2 देसी गायों का दूध, दही व घी इस्लेमाल होता है।*

 

मै उन लोगों के बारे में सोच रहा था ,

जो ब्रांडेड दूध को बेस्ट मानकर खरीदते हैं।

🤔🤔


5.

एक प्रसिद्ध रेस्तरां जो कि अपनी विशिष्ट थाली और शुद्ध खाने के लिए प्रसिद्ध है ,

हम खाना खाने गये।

निकलते वक्त वहां के मैनेजर ने बडी विनम्रता से पूछा-

सर खाना कैसा लगा ? हम बिल्कुल शुद्ध घी तेल और मसाले प्रयोग करते हैं ,

हम कोशिश करते हैं बिल्कुल घर जैसा खाना लगे।

मैंने खाने की तारीफ़ की तो उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड देने को अपने केबिन में गये।

काउंटर पर एक 3 डब्बों का स्टील का टिफिन रखा था।

एक वेटर ने दूसरे से कहा--

"सुनील सर का खाना अंदर केबिन में रख दे , बाद में खाएंगे"। 

मैंने वेटर से पूछा क्या सुनील जी यहां नही खाते?

तो उसने जवाब दिया--

*"सुनील सर कभी बाहर नही खाते ,*

*हमेशा घर से आया हुआ खाना ही खाते हैं"*

मैं अपने हाथ में 1670 रु के बिल को देख रहा था।

🤔〽️✌️🤔


👇🏾

ये कुछ वाकये हैं जिनसे मुझे समझ आया कि .. 

*हम जिसे सही जीवन शैली समझते हैं ..*

*वो हमें भ्रमित करने का जरिया मात्र है।*


*हम कंपनियों के ATM मात्र हैं।*

*जिसमें से कुशल मार्केटिंग वाले लोग मोटा पैसा निकाल लेते हैं।*


*अक्सर जिन चीजों को हमें बेचा जाता है ,*

*उन्हें बेचने वाले खुद इस्तेमाल नहीं करते।*

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   *विचारणीय*

स्वास्थ लाभ के साथ देश विरोधी मानसिकता

 1. वे अगस्त-सितंबर, 2020 तक टीका बनाने को प्रोत्साहित करने के भारत सरकार के प्रयास का मखौल उड़ा रहे थे। टीका बन गया, आपातकालीन मंजूरी दे दी गई तो जनवरी, 21 में कहने लगे बिना उपुयक्त प्रक्रिया के ये टीका बना है, इसे नहीं लगवाना। इनमें अनेक माननीय मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय स्तर के नेता शामिल थे। सर्वोच्च न्यायालय के महान् वकील साहब तो मार्च, 20 में भी कह रहे थे कि देश में हर्ड इम्युनिटी पहले ही आ गई है अतः टीके हेतु 35 हजार करोड़ का प्रावधान धन की बर्बादी है। अप्रैल, 20 में अचानक इन सबके भीतर से एक साथ ज्ञान फूटा कि सारे देशवासियों को केन्द्र सरकार द्वारा तुरन्त दोनों डोज लगवानी चाहिए। सरकार निकम्मी है, इन महान् लोगों के पास तो अलादीन का चिराग है, जब चाहें, जितने टीके तैयार करवा सकते हैं। वाह, आम जनता की क्या गजब चिंता करते हैं। 2-3 माह में क्रम से सबकी बारी आ जाती, पर एक धड़े द्वारा अव्यवस्था निर्मित करनी हो तो क्या कहिये?

2. ये महान् ज्ञानी फिर ज्ञान दे रहे हैं कि सरकार ने देश की सारी ऑक्सीजन बेच दी, कोरोना की दूसरी किश्त को भुगतना पड़ रहा है। अरे भाई, इंडस्ट्रियल और मेडिकल ऑक्सीजन अलग-अलग होती है, ये रोज़ बनती है, लंबे समय तक स्टोर नहीं कर सकते,  भंडारण की सीमा होती है। आवश्यकता होने पर उत्पादन बढ़ सकता है, उसका ट्रांस्पोर्टेशन करना पड़ेगा-कुछ समय लगेगा ही। कोविड19 की कोई भी लहर मुहूर्त से नहीं आती, उसके आने, बढ़ने, थमने के अंदाज़ ही होंगे। माना हम तो पिछड़े हैं, अमेरिकी, योरोपीय देश और उनकी अधुनातन व्यवस्थाएँ भी ऐसी महामारी के सामने एक बार दबाव में आएंगी। पर  स्थिति को नियंत्रण में लाने में खुलकर सहयोग करने की जगह बस पैनिक निर्मित करना। सरकारों के गुण-दोष तो समय पड़ा है, बाद में देख लेंगे, कमी को और कमी में बदलना?

3. गत वर्ष वेंटीलेटर मांगे, बढ़-चढ़ कर मांगे, बिना आधार संरचना का विचार और व्यवस्था किये। आ गए, कुछ इनस्टॉल करवा लिए, कैलिब्रेट कर दिए गए, शेष स्टोर में। अचानक अप्रैल, 21 में गर्द झाड़ी, चलाना आता नहीं-कह दो रद्दी भेजे थे। वाह साहब, 6-7 माह बाद, रद्दी घोषित करने का आलाकमान निर्देश देता है! जाँचने पर पता लगा कहीं ऑक्सीजन फ्लो नहीं, कहीं कनेक्टर नहीं, कहीं किराए पर चढ़ा दिए! ख़राबी वेंटिलेटर में नहीं, कुछ लोगों की नीयत में है।

4. पी एम केयर फण्ड को अफण्डा घोषित करने की बेचैनी तो पिछले साल ही ओवरफ्लो हो रही थी। कैसी दलीलें देते थे, कोर्ट में एक नहीं टिकी। ज्ञात हुआ कि ऑडिट आदि के  पी एम रिलीफ फण्ड वाले सब प्रावधान इसमें भी थे, सिवा एक पार्टी के अध्यक्ष के सदस्य होने के। सारे सदस्य पदेन रखे गए, इससे हुजूर  इतने चिढ गए?

5. पिछले साल लॉकडाउन केंद्रीय स्तर पर घोषित किया तो प्रदेशों के हक़ पर कुठाराघात बताया, पूरा गिरोह विकेन्द्रीयकरण की राग अलापता रहा। इस बार प्रदेशों पर छोड़ा तो भी वैसे ही हाय-तौबा! यह सब आदतन और इरादतन तो नहीं?

6.  चुनावी रैलियों में मोदी एण्ड पार्टी ने दूसरी लहर फैला दी अतः यह इण्डियन और मोदी वैरिएंट है। कोविड19 के जन्म-स्थल चीन का नाम लेते ही जिनको करंट-सा लगता है, नस्लवादी टिप्पणी लगती है अब कुछ भी बको? भाई, नवंबर,20 के बिहार चुनाव में आयोग    वर्चुअल रैली से ही प्रचार करने की बात कर रहा था तब 9 पार्टियों ने लम्बा-चौड़ा प्रतिवेदन देकर इसे नकार दिया था। 2जुलाई के अपनी पसंद के अखबार देख लो। अप्रैल मध्य तक रैलियों पर किसी दल को आपत्ति नहीं थी। केरल जहाँ नया स्ट्रेन फैल रहा था, ये दल खुलकर रैलियां कर रहे थे, तमिलनाडु में दिक्कत नहीं, पुश अप लगा रहे थे, असम में भी दिक्कत नहीं। एक नेता को अचानक बंगाल में चौथे चरण के बाद इलहाम हुआ कि चुनावी रैलियां घातक हैं-वाह क्या अंतर्दृष्टि है! मान  लीजिये जमावड़ा जिसने भी, जिस भी कारण से किया वे सब दोषी हैं। भीड़ चाहे धार्मिक मेले में हुई, सामाजिक उत्सव में हुई या राजनैतिक कारण से हुई - घातक ही रही। उधर किसान आंदोलन तो कब से ही चल रहा है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम यूपी, दिल्ली में बड़ी-बड़ी सभाएं-क्या इस भीड़ का कोरोना फैलाने में कोई रोल नहीं? इन्हें विशेष इम्युनिटी मिली हुई है? इनको ऊपर के मन से ही कह देते कि भई अभी एक बार घर जाओ।

7. एक पूरा इको सिस्टम सक्रिय है, प्रतिमा-खण्डन का मूल उद्देश्य लिए , नए-नए नैरेटिव गढ़ते हैं, आरोप लगाकर कुटिल हँसी हँसते हैं, अगला उत्तर दे तब तक नई तोहमत मढ़ देते हैं। कोरोना से लड़ने की जगह इन्हें मोदी  और सरकार की छवि से लड़ना है। प्रतिपक्ष का यह हक़ हो सकता है। प्रतिपक्षी नेतृत्व अभी जितना बचकाना कभी नहीं रहा, अब तो यह  धूर्त और मक्कार भी लगने लगा  है। यहां भी अनेक नेता-कार्यकर्ता, समर्थक सेवाभावी हैं  परन्तु ऊपर से गाइड लाइन आती है, उसी अनुरूप इन्हें भी सोशल साइट पर दिखना होता है। कुछ पुराने लाभार्थी, कुछ निस्वार्थ सेवार्थी इस इको सिस्टम को कंधों पर चके हुए हैं। विश्व के सबसे बड़े अमेरिकन सटोरिये ने तो विश्व से राष्ट्रवादी सरकारों को मिटाने का प्रण ले रखा है, अरबों की ख़ैरात कोई यूँ ही नहीं बाँटता।

जो लोग कोविड की चपेट में आये, जिन्होंने स्वजन खोए, अव्यवस्था के शिकार हुए उन सबका आक्रोशित होना स्वाभाविक है, उन्हें सांत्वना, राहत कैसे मिले , यह हमारी चिंता में सर्वोपरि हो। भविष्य में आपातकालीन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को सुचारू बनाने का रोडमैप केंद्र व प्रांत दोनों की सरकारें बनाएं, स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल बनाये रखें, टीकाकरण को गति दें, भविष्य के लिए सबक लें-यह सब कार्यसूची में ऊपर हो। 

उन गिद्धों का क्या करें, जो शैय्या पर लेटे हुओं की मृत्यु की कामना कर रहे हैं। यदि इनके हाथ बागडोर होती तो क्या हालात होते, कुछ अंदाजा है?

कुत्ते का प्रेम

 *✍️लॉकडौउन में वे लोग पिछले कई दिनों से इस जगह पर खाना बाँट रहे थे।*. 

 *हैरानी की बात ये थी कि एक कुत्ता हर रोज आता था और किसी न किसी के हाथ से खाने का पैकेट छीनकर ले जाता था।*. 

 *आज उन्होने एक आदमी की ड्यूटी भी लगाई थी कि खाने को लेने के चक्कर में कुत्ता किसी आदमी को न काट ले।*


*लगभग ग्यारह बजे का समय हो चुका था और वे लोग अपना भोजन वितरण शुरू कर चुके थे। तभी देखा कि वह कुत्ता तेजी से आया और एक आदमी के हाथ से खाने की थैली झपटकर भाग गया।*


*वह लड़का जिसकी ड्यूटी थी, वह डंडा लेकर, उस कुत्ते का पीछा करते हुए, कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता भागता हुआ, थोड़ी दूर एक झोंपड़ी में घुस गया।*


*वह आदमी भी उसका पीछा करता हुआ झोंपड़ी तक आ गया। कुत्ता खाने की थैली झोंपड़ी में रख के पास मे बैठा था।*


*उस लड़के ने झोंपड़ी में देखा कि एक आदमी अंदर लेटा हुआ है। चेहरे पर बड़ी सी दाढ़ी है और उसका एक पैर भी नहीं है।गंदे से कपड़े हैं उसके।*


*"ओ भैया! ये कुत्ता तुम्हारा है क्या?"*


*"मेरा कोई कुत्ता नहीं है। "कालू" तो मेरा बेटा है। उसे कुत्ता मत कहो भाई।" दिव्यांग बोला।*


*"अरे भाई ! ये हर रोज खाना छीनकर भागता है। किसी को काट लिया तो, ऐसे lockdown में डॉक्टर कहाँ मिलेगा....इसे बांध के रखा करो।*


*इतने मे कुत्ता उठकर बाहर चला गया।*. 

 *"गरीब बोला मैं इसे मना नहीं कर सकूँगा। मेरी भाषा भले ही न समझता हो लेकिन वो मेरी भूख को समझता है। जब मैं घर छोड़ के आया था, तब से ही मेरे साथ है। मैं नहीं कह सकता कि मैंने उसे पाला है या इसने मुझे पाला है। मेरे तो बेटे से भी बढ़कर है। मैं तो इसी रेड लाइट पर पैन बेचकर अपना गुजारा करता हूँ.....*. 

 *पर आजकल सब बंद है।"*


*वह लड़का एकदम मौन हो गया।उसे ये संबंध समझ ही नहीं आ रहा था। इतने में उस आदमी ने खाने का पैकेट खोला और आवाज लगाई,*


*"कालू !! ओ बेटा कालू ..... आ जा खाना खा ले।"*


*कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आदमी का मुँह चाटने लगा।खाने को उसने सूंघा भी नहीं। उस आदमी ने खाने की थैली खोली और पहले कालू का हिस्सा निकाला,फिर अपने लिए खाना रख लिया।*


*"खाओ बेटा !" उस आदमी ने कुत्ते से कहा मगर कुत्ता उस आदमी को ही देखता रहा। जब उस दिव्यांग ने अपने हिस्से से खाने का शुरू किया, तो उसे खाते देख कालू ने भी खाना शुरू कर दिया। दोनों खाने में व्यस्त हो गए।*


*उस लड़के के हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर पड़ा था। जब तक दोनों ने खा नहीं लिया वह अपलक उन्हें देखता रहा। अंत मे लड़के ने कहा*. 

 *"भैया जी !आप भले ही गरीब हों ,मजबूर हों, मगर आपके जैसा बेटा किसी के पास नहीं होगा।" कहते कहते उसने जेब से कुछ पैसे निकाले और उस दिव्यांग के हाथ पर रख दिये।* 


*दिव्यांग बोला "रहने दो भाई, किसी और को इनकी ज्यादा जरूरत होगी। मुझे तो मेरा सपूत कालू ला ही देता है। मेरे बेटे के रहते मुझे भोजन की कोई चिंता नहीं।"*


*वह लड़का हैरान था कि आज आदमी, आदमी से छीनने को आतुर है और ये कुत्ता...बिना अपने मालिक के खाये.... खाना भी नहीं खाता है।*


*उसने बड़े प्यार से कालु के सरपर हाथ फेरा ओर बोला "कल से खाना लेने आ जाना कालू हम तुझे 2 पैकेट देंगे। ठीक है और हाँ, किसी से छीनना नही,सीधा हमसे लेना"*. 


        *👇शिक्षा👇*  

      🌷🌷🌷🌷🌷 

*कालू तो जन्म से ही जानवर है फिर भी वह उसकी शक्ति का उपयोग किसी गरीब - मजबूर की सहायता करने में लगा रहा है और हमे तो भगवान ने असीम कृपा कर मानव जन्म दिया और हम ?????*  

*कोई दवा के नाम पर तो कोई हॉस्पिटल के नाम पर तो कोई अन्य किसी नाम से किसी मजबूर को लूट तो नही रहा है ???* 

*मनुष्य जन्म बार - बार नही मिलने वाला है ऐसा ना हो कि हमने कोई सत्कार्य ही नही किया और हमारा ये जन्म ही लूंटा जाए* 


  *☝️चिंतन ज़रूरी है☝️*

हिंदुओं से बेरुखी क्यों

 सिर्फ 15 दिन पहले भारत में एक ऐसी घटना हुई जो पता नहीं क्यों मीडिया की सुर्खी नहीं बनी जबकि वह घटना भारत भारत में हिंदुओं की स्थिति पर और लाचारी पर थी 


दरअसल मद्रास उच्च न्यायालय में पेरमंबलूर जिले के कड़तुर  गांव का मामला पहुंचा था


 इस गांव में 100 साल पहले से ही हिंदू रथ यात्रा निकालते थे इस गांव में चार प्रमुख मंदिर थे और उन मंदिरों की रथ यात्रा सैकड़ों सालों से निकलती थी और दक्षिण भारत के मंदिरों में हर मंदिर का प्रमुख मंदिर का रथ यात्रा निकलता है


 2011 तक ये रथ यात्रा निर्विघ्न रुप से निकलती रही लेकिन 2012 में जमात-ए-इस्लामी तमिलनाडु ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया ..उन्होंने दो बार रथ यात्रा पर हमले किए 


मामला सेशन कोर्ट में गया ...मुस्लिम पक्ष यानी जमात का यह कहना था कि चूंकि गांव में मुस्लिम आबादी अधिक है और इस्लामिक मान्यता में मूर्ति पूजा शिर्क यानी पाप है और क्योंकि मुसलमानों के सामने से देवी-देवताओं के रथ गुजरते हैं तो उनकी मूर्तियों को देखकर मुस्लिम को शिर्क यानी पाप लगता है इसलिए ऐसी रथ यात्रा और अन्य हिंदू उत्सव पर मुस्लिम इलाके में रोक लगाई जाए 


सोचिए यह दलील घोर असहिष्णुता के साथ-साथ भारत में मुस्लिमों के दुस्साहस की एक मिसाल है और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पेरंबलूर सेशन कोर्ट ने जमात की इस दलील पर यकीन करते हुए भारत के संविधान और भारत की धर्मनिरपेक्षता का खुलेआम बलात्कार करते हुए रथ यात्रा पर रोक लगा दिया


 उसके बाद हिंदू पक्ष मद्रास उच्च न्यायालय गया मद्रास उच्च न्यायालय में जस्टिस कृपाकरन और जस्टिस वेलमुरूगन की पीठ ने विरोधी पक्ष यानी जमात से पूछा माना कि समूह सांप्रदायिक हो सकते हैं व्यक्ति सांप्रदायिक हो सकता है परंतु क्या सड़कें भी सांप्रदायिक हो सकती हैं ? क्या भारत में संविधान का राज नहीं है? मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ ने जमात को याद दिलाया कि यदि उसका यह तर्क मान लिया जाए तो फिर भारत के हिंदू बहुल में इलाकों में ना मुस्लिम आयोजन हो सकता है ना जुलूस की अनुमति दी नहीं कोई मस्जिद बन सकती है या मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान हो सकता है 


लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है मद्रास उच्च न्यायालय ने यह कहा कि यह अत्यंत दुख का विषय है कि हिंदुओं को भारत में बहुसंख्यक होते हुए भी अपनी पूजा जैसे मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण में जाना पड़ रहा है


और मद्रास उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्ष को गांव में बदस्तूर रथयात्रा निकालने का आदेश दिया और तमिलनाडु सरकार से कहा कि वह पूरे तमिलनाडु में इस बात की निगरानी करें कि हिंदुओं की पूजा रथ यात्रा पर किसी तरह का विघ्न न  आने पाए


 दरअसल तमिलनाडु में जमाते इस्लामी हिंद और दूसरी तमाम मुस्लिम संस्थाओं ने इस्लामीकरण की शुरुआत 90 के दशक से ही शुरु कर दिया और इसमें डीएमके ने उसकी पूरी मदद किया 


वोट बैंक के लिए तमिलनाडु का सत्तापक्ष हमेशा चुप रहा 


जमात का दुस्साहस देखिए कि 2016 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में मूर्ति पूजा और बहुत ईश्वरवाद  के खिलाफ तमिलनाडु तौहीद जमात ने एक बहुत बड़ी रैली निकाला इस रैली में ऐसे भाषण दिए गए जो भाषण तालिबान या फिर IS  के आतंकवादी दिया करते हैं 


इस रैली में वक्ताओं ने मंच से भारत में मूर्ति पूजा खत्म करने का शपथ लिया और भारत के हर एक मूर्ति को तोड़ने की बात कही थी इस रैली में मुस्लिम नेता अब्दुल रहीम ने ऐलान किया था कि मूर्ति पूजा का विरोध इस्लाम का मूल चरित्र है और हमारे पैगंबर ने सबसे पहले यह काम किया था जब उन्होंने मक्का और मदीना जीता था तब उन्होंने वहां रखी सभी बुतों को अपने हाथों से नष्ट किया था


 इस रैली में कुछ मुस्लिम वकीलों ने यह भाषण दिया कि मूर्ति पूजा का विरोध और मूर्तियों को नष्ट करना इस्लाम का मूल चरित्र है और यदि संविधान इसे रोकता है तब संविधान उनकी धार्मिक आजादी में खलल दे रहा है 


इस रैली के बाद मूर्तियों के खिलाफ पूरे तमिलनाडु के कई शहरों में बेहद भड़काऊ पोस्टर और बैनर लगाए गए 


हिंदू संगठन हिंदू मक्कल काटची  इस कट्टरपंथी संगठन की तमाम रैलियों को रोकने की मांग तमिलनाडु सरकार से किया लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इस पर कोई रोक नहीं लगाई 


तमिलनाडु में हिंदुओं की हालत कितनी खराब है उसका उदाहरण कुछ साल पहले तमिलनाडु के पेरियाकुलम कस्बे के पास बोम्बीनायिकन पट्टी गांव में एक दलित मृतक की शव यात्रा को मुस्लिम आबादी से गुजरने से रोक दिया गया था और जमकर हिंसा हुई थी दंगे भड़के थे कई लोग मारे गए थे लेकिन मीडिया में यह खबर नहीं आई 


इसी तरह तेनकासी  के सकंबलम गांव में मुस्लिम पक्ष की आपत्ति के बाद पुलिस ने हिंदू पक्ष को सुने बिना निर्माणाधीन मंदिर को ढहा  दिया था

सेना का एक मेजर

 Jeevan Darpan

An Eye Openor


Heart Touching Storey 



ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।


"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।


बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।


दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।


युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।


मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।


इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।


"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।


सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।


बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।


जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।


उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।


भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।


पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...


अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-

"कौन था वो आदमी?"


नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।


"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"


"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"


"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"

 

नर्स सुनती रही, उलझन में।

 

"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"


"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।


"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"


'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'


दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।


*दोस्तो, जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। 

आपके बोल, उत्साह, आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास कि *''मैं हूँ ना''* ही उसके लिये काफी है।

~copied.

Thursday, 15 April 2021

दादी से पोती तक


मेरी दादी आई थी अपने ससुराल पालकी में बैठकर,

*माँ* आई थी बैलगाड़ी में,

*मैं* कार में आई, 

*मेरी बेटी* हवाईजहाज से,

*मेरी पोती* हनीमून की ट्रिप पर

उड़गई अंतरीक्ष में।


कच्चे मकान में *दादी* की जिंदगी गुजर गई

पक्के मकान *में* रही *माँ*

मुझे मिला मोजाइक का घर

*बेटी* के घर में मार्वल

*पोती* के घर में स्लैब लगे हैं ग्रेनाईट के।


*दादी* पहनती थी खुरदरे खद्दर की साड़ी

*माँ* की रेशमी और संबलपुरी

*मैंने* पहनी हर तरह की फैशनेबुल साड़ियाँ

*बेटी* की हैं सलवार-कमीज, जीन्स और टॉप्स

मेरी *पोती* पहन रही 

स्किन फिटिंग टी-शर्ट और शर्ट्स।


लकड़ी के चूल्हे में खाना पकाती थी *दादी*

*माँ* की थी कोयले की सिगड़ी और हीटर 

*मेरे* हिस्से में आया गैस का चूल्हा,

जहाँ *बेटी* की रसोई होती माइक्रोवेव ओवन से

*पोती* आधे दिन घर चलाती 

डिब्बे के खाने से।


*दादा* जी से कुछ कहने को दादी

इंतजार करती थी

सबेरे लालटेन के बुझने तक,

*माँ* बात करती पिता जी से ऐसे

मानो दीवार से बोल रही,

*मैं* इनसे बात करती "अजी सुनते हो",

*मेरी बेटी* दामाद जी को नाम से बुलाती,

*पोती* आवाज लगाती दामाद को

"हाय हनी"।


*दादी* बतियाती थी दादा जी से

आधी बात सीने में दबाकर

*माँ* बोलती पिताजी की हाँ में हाँ मिलाकर

*मैंने* इनकी कई बातों पर सवाल उठाये 

*मेरी बेटी* तो दामाद जी की बोलती

बंद कर देती, अपने तर्क से

उधर बातों-बातों में *पोती*

अपना अधिकार वसूलती दामाद से।


  कई बच्चों की माँ थी *दादी*

*माँ* के बच्चे उससे कुछ कम थे

*मेरी* गोद में बच्चे दो ही अच्छे

*बेटी* की तो आँख का तारा 

उसका इकलौता

*पोती* माँ बनने को ढूँढ रही 

किराये की कोख।


*दादी* मुँह धोती थी मुल्तानी मिट्टी से

*माँ* सिलबट्टे से पिसी हुई हल्दी से

*मैं* साबुन से धोती 

मेरी *बेटी* फेस वाश से

*पोती* फैस पैक चुपड़ती 

अपने स्टीम किए चेहरे पर।


*दादी* का था बहुत बड़ा परिवार

*माँ* भी पिस जाती थी परिवार की भीड़ में,

*मैं* कभी ससुराल जाती

तो कभी सास-ससुर मेरे पास आकर रहते,

*मेरी बेटी* सास-ससुर को 

कुछ दिनो के लिए रखती

एक घोंसलानूमा कमरे में

वह भी हिस्से में जब उसकी बारी आती,

*पोती* अभी से बात कर चुकी वृद्धाश्रम वालों से

अपने सास-ससुर के बुढ़ापे के लिए।


*दादी* की सोच और उसकी रीत थी 

बाबा आदम के जमाने की,

*माँ* की रूढ़ीवादी, 

*मेरी* आधुनिक,

पर *बेटी* की सोच है अत्याधुनिक,

जबकि मेरी *नातिन,* आचरण और उच्चारण

दोनो में उत्तर आधुनिक।


इसी तरह पीढ़ी आगे बढ़ रही, पुरानी को मसलकर,

समय की धारा बदल रही नयी को सँवार कर,

हमारे देखते बदल गया सबकुछ दादी से पोती तक।


( आभार सहित प्रस्तुत । )

डॉ. सुषमा मिश्र

महान ऋषि पिप्पलाद

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेवाला' (पिप्पल...