Wednesday, 26 May 2021

पद का भी एक दौर होता है

 💡फ्यूज बल्ब

(एक और बढिया बात सुनिये)


हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त (retired) हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।


एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि।


और वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।


‌एक दिन जब #सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न , कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला।


उन्होंने समझाया - आपने कभी फूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ कौन बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं । है‌ कि नहीं ?


 जब उस‌ रिटायर्ड‌ अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया‌ तो‌ बुजुर्ग बोले‌ - रिटायरमेन्ट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रूतबा‌ था‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ।


कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते‌ हुए फिर वो बुजुर्ग‌ बोले कि मै सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मै दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्मा जी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बतायी है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूँ ।


सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो‌, कोई रोशनी नहीं‌, कोई उपयोगिता नहीं; यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।


उगते सूर्य को जल चढा कर सभी पूजा करते हैं पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।


कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेन्ट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - ....... 


सक्सेना/गुर्जर/मीणा/गुप्ता/मेघवाल/चौधरी, रिटायर्ड आइ.ए.एस‌....... सिंह ...... रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि।


ये‌ रिटायर्ड IAS‌/RAS/sdm/तहसीलदार/पटवारी/बाबू/प्रोफेसर/प्रिंसिपल/अध्यापक अब कौन सा‌ पद है भाई ? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? 


अब तो‌ आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌।

 यह बात कोई मायने‌ नहीं रखती‌ कि‌ आप किस विभाग में थे‌, कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌, कितने‌ मेडल‌ आपने‌ जीते‌ हैं‌


अगर‌ कोई बात मायने‌ रखती है‌ तो वह‌ यह है कि 


आप इंसान कैसे‌ है‌?

 आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ है‌ ?

आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी

पद पर रहते हुए कितनी मदद की

समाज को क्या दिया?

ज़रूरतमंद व अपने समाज के गरीब लोगों से कैसे रिश्ता/व्यवहार रखा ?


लोग आपसे‌ डरते‌ थे‌ कि‌ आपका सम्मान करते‌ थे ?


 अगर‌ लोग आपसे डरते थे‌ तो‌ आपके‌ पद से हटते ही उनका वह‌ डर हमेशा के‌ लिए खत्म हो जाएगा। 


पर अगर लोग आप का सम्मान करते हैं तो‌ 


यह‌ सम्मान‌ आपके पद विहीन‌ होने‌ पर भी कायम रहेगा‌। आप मरने के बाद भी उनकी यादों में, उनके दिलों में जिन्दा रह सकते हैं।


हमेशा याद रखिए


 *बड़ा अधिकारी‌/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं‌, बड़ा‌ इंसान‌ बनना‌ बड़ी‌ बात जरूर है*।

      *बड़ा दिल रखिए। सदा उदार बनिए । किसी की मदद का कोई मौका मत चूकिए। कोई भेदभाव नहीं ।सब अपने ही है। इंसान बड़ा बनता है अपने कर्मो से न कि पैसे रुतबे से। यह विचारणीय है।*

*JaiGuruji*

मजबूत हृदय वीर सावरकर

 


#वीर_सावरकर --- एक कल्पना कीजिए... तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...


इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना?? जी हाँ!!! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की. यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी  (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं.


मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए. इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा...”. कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो...” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी... अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.... (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा).


अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा?? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”.


क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से यह हर किसी को नहीं मिलती।

-साभार

सकारात्मक सोच का प्रभाव

 *सकारात्मक सोच का महत्व!*_


*एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था।  ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गई। ऑटो ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते-टकराते बची।


कार चला रहा आदमी गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा जबकि गलती उसकी थी! ऑटो चालक एक सत्संगी,  सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति था। उसने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते हुए आगे बढ़ गया।


ऑटो में बैठे पैसेंजर को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा... तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया ? उसने तुम्हें भला-बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी।


हमारी किस्मत अच्छी है.... नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।


ऑटो वाले ने बहुत मार्मिक जवाब दिया...... "साहब, बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं।......


जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं। जैसे.... क्रोध, घृणा, चिंता, निराशा आदि। जब उनके दिमाग में इनका कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है.... तो, वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं।


इसलिए .....मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्करा कर अलविदा कह देता हूँ। क्योंकि ....अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा मैंने स्वीकार कर लिया..... तो, मैं भी कूड़े का ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ-साथ आसपास के लोगों पर भी वह कूड़ा गिराता रहूँगा।


मैं सोचता हूँ जिंदगी बहुत ख़ूबसूरत है। इसलिए...... जो हमसे अच्छा व्यवहार करते हैं उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते उन्हें मुस्कुरा कर भुला दो।


हमें यह याद रखना चाहिए कि सभी मानसिक रोगी केवल अस्पताल में ही नहीं रहते हैं....... कुछ हमारे आसपास खुले में भी घूमते रहते हैं!


प्रकृति के नियम*


यदि खेत में बीज न डाले जाएँ..... तो, कुदरत उसे घास-फूस से भर देती है।


उसी तरह से...... यदि दिमाग में सकारात्मक विचार न भरें जाएँ तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं।


दूसरा नियम है कि*


जिसके पास जो होता है वह वही बाँटता है।....... “सुखी” व्यक्ति सुख बाँटता है, “दुखी” व्यक्ति दुख बाँटता है, “ज्ञानी” ज्ञान बाँटता है, "भ्रमित" भ्रम बाँटता है और.... “भयभीत” भय बाँटता है। जो खुद डरा हुआ है वह औरों को डराता है, जो दबा हुआ है वह दूसरों को दबाता है।


इसलिए.... नकारात्मक लोगों से दूरी बनाकर खुद को नकारात्मकता से दूर रखें। और जीवन में सकारात्मकता अपनाएं ।

लघु कथा और एक मानसिकता

 इन पांच लघु कहानी से समझे

उपभोगवाद की हकीकत


1.

सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका।

दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया ,

तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं ,

*तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था ,*

*सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।*

अभी आते होंगे!


मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?

🤔🤔


2.

माँ का ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ा हुआ था , सो सवेरे सवेरे उन्हें लेकर उनके पुराने डॉक्टर के पास गया।

क्लिनिक से बाहर उनके गार्डन का नज़ारा दिख रहा था ,

जहां डॉक्टर साहब योग और व्यायाम कर रहे थे।

मुझे करीब 45 मिनिट इंतज़ार करना पड़ा। 

कुछ देर में डॉक्टर साहब अपना नींबू पानी लेकर क्लिनिक आये ,

और माँ का चेक-अप करने लगे।

उन्होंने मम्मी से कहा आपकी दवाइयां बढ़ानी पड़ेंगी ,

और एक पर्चे पर करीब 5 या 6 दवाइयों के नाम लिखे।

उन्होंने माँ को दवाइयां रेगुलर रूप से खाने की हिदायत दी।

बाद में मैंने उत्सुकता वश उनसे पूछा कि...

क्या आप बहुत समय से योग कर रहे हैं.?


तो उन्होंने कहा कि...

*पिछले 15 साल से वो योग कर रहे हैं ,*

*और ब्लड प्रेशर व अन्य बहुत सी बीमारियों से बचे हुए हैं!*


मैं अपने हाथ में लिए हुए माँ के उस पर्चे को देख रहा था ,

जिसमें उन्होंने BP और शुगर कम करने की कई दवाइयां लिख रखी थी.?

🤔🤔


3.

अपनी बीवी के साथ एक ब्यूटी पार्लर गया। मेरी बीवी को हेयर ट्रीटमेंट कराना था , क्योंकी उनके बाल काफी खराब हो रहे थे।

रिसेप्शन में बैठी लड़की ने उन्हें कई पैकेज बताये और उनके फायदे भी। पैकेज 1200 ₹ से लेकर 3000 ₹ तक थे।

कुछ डिस्काउंट के बाद मेरी बीवी को उन्होंने 3000 ₹ वाला पैकेज 2400 ₹ में कर दिया।

हेयर ट्रीटमेंट के समय उनका ट्रीटमेंट करने वाली लड़की के बालों से अजीब सी खुश्बू आ रही थी।

मैंने उससे पूछा कि आपने क्या लगा रखा है ,

कुछ अजीब सी खुश्बू आ रही है।


तो उसने कहा ---

*उसने तेल में मेथी और कपूर मिला कर लगा रखा है ,*

*इससे बाल सॉफ्ट हो जाते हैं और जल्दी बढ़ते हैं।*


मैं अपनी बीवी की शक्ल देख रहा था , जो 2400 रु में अपने बाल अच्छे कराने आई थी।

🤔🤔


4.

मेरी रईस कज़िन जिनका बड़ा डेयरी फार्म है, उनके फार्म पर गया।

फार्म में करीब 150 विदेशी गाय थी , जिनका दूध मशीनों द्वारा निकाल कर प्रोसेस किया जा रहा था।

एक अलग हिस्से में 2 देसी गाय हरा चारा खा रही थी।

पूछने पर बताया.. .

*उनके घर उन गायों का दूध नही आता ,* *जिनका दूध उनके डेयरी फार्म से सप्लाई होता है।*

बल्कि परिवार के इस्तेमाल के लिए ...

*इन 2 देसी गायों का दूध, दही व घी इस्लेमाल होता है।*

 

मै उन लोगों के बारे में सोच रहा था ,

जो ब्रांडेड दूध को बेस्ट मानकर खरीदते हैं।

🤔🤔


5.

एक प्रसिद्ध रेस्तरां जो कि अपनी विशिष्ट थाली और शुद्ध खाने के लिए प्रसिद्ध है ,

हम खाना खाने गये।

निकलते वक्त वहां के मैनेजर ने बडी विनम्रता से पूछा-

सर खाना कैसा लगा ? हम बिल्कुल शुद्ध घी तेल और मसाले प्रयोग करते हैं ,

हम कोशिश करते हैं बिल्कुल घर जैसा खाना लगे।

मैंने खाने की तारीफ़ की तो उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड देने को अपने केबिन में गये।

काउंटर पर एक 3 डब्बों का स्टील का टिफिन रखा था।

एक वेटर ने दूसरे से कहा--

"सुनील सर का खाना अंदर केबिन में रख दे , बाद में खाएंगे"। 

मैंने वेटर से पूछा क्या सुनील जी यहां नही खाते?

तो उसने जवाब दिया--

*"सुनील सर कभी बाहर नही खाते ,*

*हमेशा घर से आया हुआ खाना ही खाते हैं"*

मैं अपने हाथ में 1670 रु के बिल को देख रहा था।

🤔〽️✌️🤔


👇🏾

ये कुछ वाकये हैं जिनसे मुझे समझ आया कि .. 

*हम जिसे सही जीवन शैली समझते हैं ..*

*वो हमें भ्रमित करने का जरिया मात्र है।*


*हम कंपनियों के ATM मात्र हैं।*

*जिसमें से कुशल मार्केटिंग वाले लोग मोटा पैसा निकाल लेते हैं।*


*अक्सर जिन चीजों को हमें बेचा जाता है ,*

*उन्हें बेचने वाले खुद इस्तेमाल नहीं करते।*

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   *विचारणीय*

स्वास्थ लाभ के साथ देश विरोधी मानसिकता

 1. वे अगस्त-सितंबर, 2020 तक टीका बनाने को प्रोत्साहित करने के भारत सरकार के प्रयास का मखौल उड़ा रहे थे। टीका बन गया, आपातकालीन मंजूरी दे दी गई तो जनवरी, 21 में कहने लगे बिना उपुयक्त प्रक्रिया के ये टीका बना है, इसे नहीं लगवाना। इनमें अनेक माननीय मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय स्तर के नेता शामिल थे। सर्वोच्च न्यायालय के महान् वकील साहब तो मार्च, 20 में भी कह रहे थे कि देश में हर्ड इम्युनिटी पहले ही आ गई है अतः टीके हेतु 35 हजार करोड़ का प्रावधान धन की बर्बादी है। अप्रैल, 20 में अचानक इन सबके भीतर से एक साथ ज्ञान फूटा कि सारे देशवासियों को केन्द्र सरकार द्वारा तुरन्त दोनों डोज लगवानी चाहिए। सरकार निकम्मी है, इन महान् लोगों के पास तो अलादीन का चिराग है, जब चाहें, जितने टीके तैयार करवा सकते हैं। वाह, आम जनता की क्या गजब चिंता करते हैं। 2-3 माह में क्रम से सबकी बारी आ जाती, पर एक धड़े द्वारा अव्यवस्था निर्मित करनी हो तो क्या कहिये?

2. ये महान् ज्ञानी फिर ज्ञान दे रहे हैं कि सरकार ने देश की सारी ऑक्सीजन बेच दी, कोरोना की दूसरी किश्त को भुगतना पड़ रहा है। अरे भाई, इंडस्ट्रियल और मेडिकल ऑक्सीजन अलग-अलग होती है, ये रोज़ बनती है, लंबे समय तक स्टोर नहीं कर सकते,  भंडारण की सीमा होती है। आवश्यकता होने पर उत्पादन बढ़ सकता है, उसका ट्रांस्पोर्टेशन करना पड़ेगा-कुछ समय लगेगा ही। कोविड19 की कोई भी लहर मुहूर्त से नहीं आती, उसके आने, बढ़ने, थमने के अंदाज़ ही होंगे। माना हम तो पिछड़े हैं, अमेरिकी, योरोपीय देश और उनकी अधुनातन व्यवस्थाएँ भी ऐसी महामारी के सामने एक बार दबाव में आएंगी। पर  स्थिति को नियंत्रण में लाने में खुलकर सहयोग करने की जगह बस पैनिक निर्मित करना। सरकारों के गुण-दोष तो समय पड़ा है, बाद में देख लेंगे, कमी को और कमी में बदलना?

3. गत वर्ष वेंटीलेटर मांगे, बढ़-चढ़ कर मांगे, बिना आधार संरचना का विचार और व्यवस्था किये। आ गए, कुछ इनस्टॉल करवा लिए, कैलिब्रेट कर दिए गए, शेष स्टोर में। अचानक अप्रैल, 21 में गर्द झाड़ी, चलाना आता नहीं-कह दो रद्दी भेजे थे। वाह साहब, 6-7 माह बाद, रद्दी घोषित करने का आलाकमान निर्देश देता है! जाँचने पर पता लगा कहीं ऑक्सीजन फ्लो नहीं, कहीं कनेक्टर नहीं, कहीं किराए पर चढ़ा दिए! ख़राबी वेंटिलेटर में नहीं, कुछ लोगों की नीयत में है।

4. पी एम केयर फण्ड को अफण्डा घोषित करने की बेचैनी तो पिछले साल ही ओवरफ्लो हो रही थी। कैसी दलीलें देते थे, कोर्ट में एक नहीं टिकी। ज्ञात हुआ कि ऑडिट आदि के  पी एम रिलीफ फण्ड वाले सब प्रावधान इसमें भी थे, सिवा एक पार्टी के अध्यक्ष के सदस्य होने के। सारे सदस्य पदेन रखे गए, इससे हुजूर  इतने चिढ गए?

5. पिछले साल लॉकडाउन केंद्रीय स्तर पर घोषित किया तो प्रदेशों के हक़ पर कुठाराघात बताया, पूरा गिरोह विकेन्द्रीयकरण की राग अलापता रहा। इस बार प्रदेशों पर छोड़ा तो भी वैसे ही हाय-तौबा! यह सब आदतन और इरादतन तो नहीं?

6.  चुनावी रैलियों में मोदी एण्ड पार्टी ने दूसरी लहर फैला दी अतः यह इण्डियन और मोदी वैरिएंट है। कोविड19 के जन्म-स्थल चीन का नाम लेते ही जिनको करंट-सा लगता है, नस्लवादी टिप्पणी लगती है अब कुछ भी बको? भाई, नवंबर,20 के बिहार चुनाव में आयोग    वर्चुअल रैली से ही प्रचार करने की बात कर रहा था तब 9 पार्टियों ने लम्बा-चौड़ा प्रतिवेदन देकर इसे नकार दिया था। 2जुलाई के अपनी पसंद के अखबार देख लो। अप्रैल मध्य तक रैलियों पर किसी दल को आपत्ति नहीं थी। केरल जहाँ नया स्ट्रेन फैल रहा था, ये दल खुलकर रैलियां कर रहे थे, तमिलनाडु में दिक्कत नहीं, पुश अप लगा रहे थे, असम में भी दिक्कत नहीं। एक नेता को अचानक बंगाल में चौथे चरण के बाद इलहाम हुआ कि चुनावी रैलियां घातक हैं-वाह क्या अंतर्दृष्टि है! मान  लीजिये जमावड़ा जिसने भी, जिस भी कारण से किया वे सब दोषी हैं। भीड़ चाहे धार्मिक मेले में हुई, सामाजिक उत्सव में हुई या राजनैतिक कारण से हुई - घातक ही रही। उधर किसान आंदोलन तो कब से ही चल रहा है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम यूपी, दिल्ली में बड़ी-बड़ी सभाएं-क्या इस भीड़ का कोरोना फैलाने में कोई रोल नहीं? इन्हें विशेष इम्युनिटी मिली हुई है? इनको ऊपर के मन से ही कह देते कि भई अभी एक बार घर जाओ।

7. एक पूरा इको सिस्टम सक्रिय है, प्रतिमा-खण्डन का मूल उद्देश्य लिए , नए-नए नैरेटिव गढ़ते हैं, आरोप लगाकर कुटिल हँसी हँसते हैं, अगला उत्तर दे तब तक नई तोहमत मढ़ देते हैं। कोरोना से लड़ने की जगह इन्हें मोदी  और सरकार की छवि से लड़ना है। प्रतिपक्ष का यह हक़ हो सकता है। प्रतिपक्षी नेतृत्व अभी जितना बचकाना कभी नहीं रहा, अब तो यह  धूर्त और मक्कार भी लगने लगा  है। यहां भी अनेक नेता-कार्यकर्ता, समर्थक सेवाभावी हैं  परन्तु ऊपर से गाइड लाइन आती है, उसी अनुरूप इन्हें भी सोशल साइट पर दिखना होता है। कुछ पुराने लाभार्थी, कुछ निस्वार्थ सेवार्थी इस इको सिस्टम को कंधों पर चके हुए हैं। विश्व के सबसे बड़े अमेरिकन सटोरिये ने तो विश्व से राष्ट्रवादी सरकारों को मिटाने का प्रण ले रखा है, अरबों की ख़ैरात कोई यूँ ही नहीं बाँटता।

जो लोग कोविड की चपेट में आये, जिन्होंने स्वजन खोए, अव्यवस्था के शिकार हुए उन सबका आक्रोशित होना स्वाभाविक है, उन्हें सांत्वना, राहत कैसे मिले , यह हमारी चिंता में सर्वोपरि हो। भविष्य में आपातकालीन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को सुचारू बनाने का रोडमैप केंद्र व प्रांत दोनों की सरकारें बनाएं, स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल बनाये रखें, टीकाकरण को गति दें, भविष्य के लिए सबक लें-यह सब कार्यसूची में ऊपर हो। 

उन गिद्धों का क्या करें, जो शैय्या पर लेटे हुओं की मृत्यु की कामना कर रहे हैं। यदि इनके हाथ बागडोर होती तो क्या हालात होते, कुछ अंदाजा है?

कुत्ते का प्रेम

 *✍️लॉकडौउन में वे लोग पिछले कई दिनों से इस जगह पर खाना बाँट रहे थे।*. 

 *हैरानी की बात ये थी कि एक कुत्ता हर रोज आता था और किसी न किसी के हाथ से खाने का पैकेट छीनकर ले जाता था।*. 

 *आज उन्होने एक आदमी की ड्यूटी भी लगाई थी कि खाने को लेने के चक्कर में कुत्ता किसी आदमी को न काट ले।*


*लगभग ग्यारह बजे का समय हो चुका था और वे लोग अपना भोजन वितरण शुरू कर चुके थे। तभी देखा कि वह कुत्ता तेजी से आया और एक आदमी के हाथ से खाने की थैली झपटकर भाग गया।*


*वह लड़का जिसकी ड्यूटी थी, वह डंडा लेकर, उस कुत्ते का पीछा करते हुए, कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता भागता हुआ, थोड़ी दूर एक झोंपड़ी में घुस गया।*


*वह आदमी भी उसका पीछा करता हुआ झोंपड़ी तक आ गया। कुत्ता खाने की थैली झोंपड़ी में रख के पास मे बैठा था।*


*उस लड़के ने झोंपड़ी में देखा कि एक आदमी अंदर लेटा हुआ है। चेहरे पर बड़ी सी दाढ़ी है और उसका एक पैर भी नहीं है।गंदे से कपड़े हैं उसके।*


*"ओ भैया! ये कुत्ता तुम्हारा है क्या?"*


*"मेरा कोई कुत्ता नहीं है। "कालू" तो मेरा बेटा है। उसे कुत्ता मत कहो भाई।" दिव्यांग बोला।*


*"अरे भाई ! ये हर रोज खाना छीनकर भागता है। किसी को काट लिया तो, ऐसे lockdown में डॉक्टर कहाँ मिलेगा....इसे बांध के रखा करो।*


*इतने मे कुत्ता उठकर बाहर चला गया।*. 

 *"गरीब बोला मैं इसे मना नहीं कर सकूँगा। मेरी भाषा भले ही न समझता हो लेकिन वो मेरी भूख को समझता है। जब मैं घर छोड़ के आया था, तब से ही मेरे साथ है। मैं नहीं कह सकता कि मैंने उसे पाला है या इसने मुझे पाला है। मेरे तो बेटे से भी बढ़कर है। मैं तो इसी रेड लाइट पर पैन बेचकर अपना गुजारा करता हूँ.....*. 

 *पर आजकल सब बंद है।"*


*वह लड़का एकदम मौन हो गया।उसे ये संबंध समझ ही नहीं आ रहा था। इतने में उस आदमी ने खाने का पैकेट खोला और आवाज लगाई,*


*"कालू !! ओ बेटा कालू ..... आ जा खाना खा ले।"*


*कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आदमी का मुँह चाटने लगा।खाने को उसने सूंघा भी नहीं। उस आदमी ने खाने की थैली खोली और पहले कालू का हिस्सा निकाला,फिर अपने लिए खाना रख लिया।*


*"खाओ बेटा !" उस आदमी ने कुत्ते से कहा मगर कुत्ता उस आदमी को ही देखता रहा। जब उस दिव्यांग ने अपने हिस्से से खाने का शुरू किया, तो उसे खाते देख कालू ने भी खाना शुरू कर दिया। दोनों खाने में व्यस्त हो गए।*


*उस लड़के के हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर पड़ा था। जब तक दोनों ने खा नहीं लिया वह अपलक उन्हें देखता रहा। अंत मे लड़के ने कहा*. 

 *"भैया जी !आप भले ही गरीब हों ,मजबूर हों, मगर आपके जैसा बेटा किसी के पास नहीं होगा।" कहते कहते उसने जेब से कुछ पैसे निकाले और उस दिव्यांग के हाथ पर रख दिये।* 


*दिव्यांग बोला "रहने दो भाई, किसी और को इनकी ज्यादा जरूरत होगी। मुझे तो मेरा सपूत कालू ला ही देता है। मेरे बेटे के रहते मुझे भोजन की कोई चिंता नहीं।"*


*वह लड़का हैरान था कि आज आदमी, आदमी से छीनने को आतुर है और ये कुत्ता...बिना अपने मालिक के खाये.... खाना भी नहीं खाता है।*


*उसने बड़े प्यार से कालु के सरपर हाथ फेरा ओर बोला "कल से खाना लेने आ जाना कालू हम तुझे 2 पैकेट देंगे। ठीक है और हाँ, किसी से छीनना नही,सीधा हमसे लेना"*. 


        *👇शिक्षा👇*  

      🌷🌷🌷🌷🌷 

*कालू तो जन्म से ही जानवर है फिर भी वह उसकी शक्ति का उपयोग किसी गरीब - मजबूर की सहायता करने में लगा रहा है और हमे तो भगवान ने असीम कृपा कर मानव जन्म दिया और हम ?????*  

*कोई दवा के नाम पर तो कोई हॉस्पिटल के नाम पर तो कोई अन्य किसी नाम से किसी मजबूर को लूट तो नही रहा है ???* 

*मनुष्य जन्म बार - बार नही मिलने वाला है ऐसा ना हो कि हमने कोई सत्कार्य ही नही किया और हमारा ये जन्म ही लूंटा जाए* 


  *☝️चिंतन ज़रूरी है☝️*

हिंदुओं से बेरुखी क्यों

 सिर्फ 15 दिन पहले भारत में एक ऐसी घटना हुई जो पता नहीं क्यों मीडिया की सुर्खी नहीं बनी जबकि वह घटना भारत भारत में हिंदुओं की स्थिति पर और लाचारी पर थी 


दरअसल मद्रास उच्च न्यायालय में पेरमंबलूर जिले के कड़तुर  गांव का मामला पहुंचा था


 इस गांव में 100 साल पहले से ही हिंदू रथ यात्रा निकालते थे इस गांव में चार प्रमुख मंदिर थे और उन मंदिरों की रथ यात्रा सैकड़ों सालों से निकलती थी और दक्षिण भारत के मंदिरों में हर मंदिर का प्रमुख मंदिर का रथ यात्रा निकलता है


 2011 तक ये रथ यात्रा निर्विघ्न रुप से निकलती रही लेकिन 2012 में जमात-ए-इस्लामी तमिलनाडु ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया ..उन्होंने दो बार रथ यात्रा पर हमले किए 


मामला सेशन कोर्ट में गया ...मुस्लिम पक्ष यानी जमात का यह कहना था कि चूंकि गांव में मुस्लिम आबादी अधिक है और इस्लामिक मान्यता में मूर्ति पूजा शिर्क यानी पाप है और क्योंकि मुसलमानों के सामने से देवी-देवताओं के रथ गुजरते हैं तो उनकी मूर्तियों को देखकर मुस्लिम को शिर्क यानी पाप लगता है इसलिए ऐसी रथ यात्रा और अन्य हिंदू उत्सव पर मुस्लिम इलाके में रोक लगाई जाए 


सोचिए यह दलील घोर असहिष्णुता के साथ-साथ भारत में मुस्लिमों के दुस्साहस की एक मिसाल है और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पेरंबलूर सेशन कोर्ट ने जमात की इस दलील पर यकीन करते हुए भारत के संविधान और भारत की धर्मनिरपेक्षता का खुलेआम बलात्कार करते हुए रथ यात्रा पर रोक लगा दिया


 उसके बाद हिंदू पक्ष मद्रास उच्च न्यायालय गया मद्रास उच्च न्यायालय में जस्टिस कृपाकरन और जस्टिस वेलमुरूगन की पीठ ने विरोधी पक्ष यानी जमात से पूछा माना कि समूह सांप्रदायिक हो सकते हैं व्यक्ति सांप्रदायिक हो सकता है परंतु क्या सड़कें भी सांप्रदायिक हो सकती हैं ? क्या भारत में संविधान का राज नहीं है? मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ ने जमात को याद दिलाया कि यदि उसका यह तर्क मान लिया जाए तो फिर भारत के हिंदू बहुल में इलाकों में ना मुस्लिम आयोजन हो सकता है ना जुलूस की अनुमति दी नहीं कोई मस्जिद बन सकती है या मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान हो सकता है 


लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है मद्रास उच्च न्यायालय ने यह कहा कि यह अत्यंत दुख का विषय है कि हिंदुओं को भारत में बहुसंख्यक होते हुए भी अपनी पूजा जैसे मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण में जाना पड़ रहा है


और मद्रास उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्ष को गांव में बदस्तूर रथयात्रा निकालने का आदेश दिया और तमिलनाडु सरकार से कहा कि वह पूरे तमिलनाडु में इस बात की निगरानी करें कि हिंदुओं की पूजा रथ यात्रा पर किसी तरह का विघ्न न  आने पाए


 दरअसल तमिलनाडु में जमाते इस्लामी हिंद और दूसरी तमाम मुस्लिम संस्थाओं ने इस्लामीकरण की शुरुआत 90 के दशक से ही शुरु कर दिया और इसमें डीएमके ने उसकी पूरी मदद किया 


वोट बैंक के लिए तमिलनाडु का सत्तापक्ष हमेशा चुप रहा 


जमात का दुस्साहस देखिए कि 2016 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में मूर्ति पूजा और बहुत ईश्वरवाद  के खिलाफ तमिलनाडु तौहीद जमात ने एक बहुत बड़ी रैली निकाला इस रैली में ऐसे भाषण दिए गए जो भाषण तालिबान या फिर IS  के आतंकवादी दिया करते हैं 


इस रैली में वक्ताओं ने मंच से भारत में मूर्ति पूजा खत्म करने का शपथ लिया और भारत के हर एक मूर्ति को तोड़ने की बात कही थी इस रैली में मुस्लिम नेता अब्दुल रहीम ने ऐलान किया था कि मूर्ति पूजा का विरोध इस्लाम का मूल चरित्र है और हमारे पैगंबर ने सबसे पहले यह काम किया था जब उन्होंने मक्का और मदीना जीता था तब उन्होंने वहां रखी सभी बुतों को अपने हाथों से नष्ट किया था


 इस रैली में कुछ मुस्लिम वकीलों ने यह भाषण दिया कि मूर्ति पूजा का विरोध और मूर्तियों को नष्ट करना इस्लाम का मूल चरित्र है और यदि संविधान इसे रोकता है तब संविधान उनकी धार्मिक आजादी में खलल दे रहा है 


इस रैली के बाद मूर्तियों के खिलाफ पूरे तमिलनाडु के कई शहरों में बेहद भड़काऊ पोस्टर और बैनर लगाए गए 


हिंदू संगठन हिंदू मक्कल काटची  इस कट्टरपंथी संगठन की तमाम रैलियों को रोकने की मांग तमिलनाडु सरकार से किया लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इस पर कोई रोक नहीं लगाई 


तमिलनाडु में हिंदुओं की हालत कितनी खराब है उसका उदाहरण कुछ साल पहले तमिलनाडु के पेरियाकुलम कस्बे के पास बोम्बीनायिकन पट्टी गांव में एक दलित मृतक की शव यात्रा को मुस्लिम आबादी से गुजरने से रोक दिया गया था और जमकर हिंसा हुई थी दंगे भड़के थे कई लोग मारे गए थे लेकिन मीडिया में यह खबर नहीं आई 


इसी तरह तेनकासी  के सकंबलम गांव में मुस्लिम पक्ष की आपत्ति के बाद पुलिस ने हिंदू पक्ष को सुने बिना निर्माणाधीन मंदिर को ढहा  दिया था

सेना का एक मेजर

 Jeevan Darpan

An Eye Openor


Heart Touching Storey 



ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।


"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।


बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।


दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।


युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।


मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।


इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।


"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।


सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।


बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।


जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।


उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।


भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।


पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...


अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-

"कौन था वो आदमी?"


नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।


"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"


"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"


"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"

 

नर्स सुनती रही, उलझन में।

 

"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"


"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।


"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"


'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'


दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।


*दोस्तो, जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। 

आपके बोल, उत्साह, आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास कि *''मैं हूँ ना''* ही उसके लिये काफी है।

~copied.

महान ऋषि पिप्पलाद

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेवाला' (पिप्पल...