Saturday, 26 October 2024

महान ऋषि पिप्पलाद



पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेवाला' (पिप्पल+अद्‍) होता है। अथर्ववेद की पिप्पलाद नामक एक शाखा उपलब्ध है। इस शाखा के प्रवर्तक सम्भवतः यही हैं। प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के रूप में इनका निर्देश प्राप्त है। मोक्षशास्त्र को 'पैप्पलाद' कहने की प्रथा थी (गर्भोपनिषद्‍) । अथर्ववेद के एक उपनिषद् (प्रश्नोपनिषद्) में प्रारम्भ में ही कथा आती है कि सुकेशा, भारद्वाज आदि छह ऋषि मुनिवर पिप्पलाद के पास गए और उनसे दर्शन संबंधी प्रश्न पूछे जिनका उन्होंने पाण्डित्यपूर्ण उत्तर दिया। वे परम विद्वान् और ब्रह्मज्ञानी थे। महाभारत के शांतिपर्व में भी यह उल्लेख मिलता है कि जब भीष्म शरशय्या पर पड़े हुए थे तो उनके पास पिप्पलाद उपस्थित थे। पुराणों में इन्हें भगवान शिव का अवतार बताया गया है।

 श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-

नारद- बालक तुम कौन हो ?

बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?

बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृ त्यु का कारण क्या था ?

नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।

बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?

नारद- शनिदेव की महादशा।

  इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।

नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।

सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है....

देवरहा बाबा का रहस्य...यह जानकार होश उड़ जायेंगे आपके..अंत तक जरुर पढें

 

देवरहा बाबा का रहस्य...यह जानकार होश उड़ जायेंगे आपके..अंत तक जरुर पढें
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं.
भारत की धरती इतनी पवित्र है कि इसमें कई दिव्‍य संतों एवं महापुरुषों ने जन्‍म लिया है,  जिनके बारे में आप जानकर चकित रह जायेंगे ऐस ही एक दिव्‍य संत थे देवरहा बाबा,,
जिन्‍हें आप योगी,तपस्‍वी, महात्‍मा,दिव्‍यात्‍मा या जो भी आपके मन में एक अच्‍छे व्‍यक्तित्‍व का निर्माण करता हो वो सभी शब्‍द आप उनके लिए प्रयोग कर सकते हैं।

देवरहा बाबा अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया,,
सहज, सरल और सादा जीवन जीने वाले देवरहा बाबा अपने भक्‍तों से बिना कुछ पूछे उनके मन की सारी बातें जान लेते हैं। इसे आप या चमत्‍कार करें या फिर उनकी साधना शक्ति।ऋषि-मुनियों के देश भारत में ऐसे कई महान संत हुये हैं, जिन्‍हें दिव्‍य आत्‍मा कहा जाता है। ऐसी ही दिव्‍य आत्‍मा में से एक देवरहा बाबा बहुत ही सहज, सरल और शांत प्रवृत्ति के थे,,
बाबा को बहुत ज्ञान था और उनसे मिलने के लिए देश दुनिया के बड़े-बड़े लोग आते थे,
देवरहा बाबा का जन्‍म-

बात की जाये अगर देवरहा बाबा के जन्‍म की तो यह एक अनसुलझा रहस्‍य ही रह गया, क्‍योंकि बाबा ने किसी भी इंटर व्‍यू या अपने किसी भी भक्‍त को अपने जन्‍म के बारे में कभी नहीं बताया।लेकिन जब बार-बार उनसे पूछा जाता था तो वे मुस्‍कुरा कर वे यही जवाब दे दिया करते थे कि ‘बच्‍चा मेरी उम्र तुम नहीं जान पाओगे।’ लेकिन उनकी जटाओं से उनकी उम्र का अंदाजा लगाया जाये तो शायद 250 साल से लेकर 900 साल के बीच की रही होगी।
लेकिन यही प्रश्‍न जब उनके भक्‍त उनसे पूछते थे तो वे जवाब देते थे कि ‘बेटा यह सब अष्‍टांग योग व खेचरी मुद्रा का कमाल है।’ और इसमें एक हैरान कर देने वाली बड़ी बात तो यह है कि वो कभी भोजन नहीं करते थे।वे यमुना का पानी पीते थे और दूध, शहद व श्रीफल के रस का सेवन करते थे। तो आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा कि ‘’क्‍या बाबा को भूख नहीं लगती थी’’ तो इस प्रश्‍न का उत्‍तर कई वैज्ञानिकों के अध्‍ययन में मिलता है।
एक अध्‍ययन के अनुसार यदि कोई व्‍यक्ति ब्रम्‍हाण्‍ड की उर्जा से शरीर के लिए आवश्‍यक एनर्जी प्राप्‍त कर ले तो उसे भूख नहीं लगती है।

साथ ही अगर कोई व्‍यक्ति ध्‍यान क्रिया, योग क्रिया, हठ योग क्रिया और संतुलित जीवन को अपनाये तो वो अधिक आयु तक जी सकता है। हालांकि अध्‍ययन के अनुसार तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्‍यक है।बाबा ना ही कभी धरती पर लेटे हैं। हमेशा एक लकड़ी के मचान में रहते थे, जो धरती से 12 फिट की उूंचाई पर होता था और उसी पर बाबा योग साधना किया करते थे।
सुबह स्‍नान करने के लिए ही बाबा मचान से नीचे आते थे। जब कभी उनसे कोई भक्‍त मिलने जाता था तो वे वही से अपने चरण को उस भक्‍त के सिर पर छुआ देते थे,जिस भक्‍त को ऐसा आशीर्वाद मिलता था, उसके सौभाग्‍य का उदय हो जाता था।
इन्‍हीं सब हैरान कर देने वाली बातों में एक बात और जोड़ दीजिए कि वो कभी कपड़ा नहीं पहनते थे, चाहे जितनी ठंडी हो या चाहे जितनी गर्मी हो। हमेशा बाघ की छाल को लपेटे रहते थे।
यह तो सिर्फ भक्‍तों द्वारा देखी गयी घटना है, लेकिन इससे पहले कई देवरहा बाबा की सिद्धियॉ-

बाबा, महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्‍टांग योग में पारंगत थे। हठ योग की दसों मुद्राओं में पारंगत थे,जिसके कारण वो कहीं भी पल भर में आ-जा सकते थे। उनके भक्‍तों के द्वारा कहा जाता था कि बाबा एक साथ दो अलग-अलग जगहों पर उपस्थित हो सकते हैं।सैकड़ों वर्ष उन्‍होंने हिमालय में तपस्‍या की है, जिसका कोई अनुमान नहीं है।
बाबा को कई सिद्धियॉ भी प्राप्‍त थी, जो इस प्रकार हैं-

जिसमें एक सिद्धि पानी में बिना सांस के रहने की,
दूसरी जंगली जानवरों की भाषा समझ लेते थे। और खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे। जो एक सामान्‍य मनुष्‍य के वश की बात नहीं है।
तीसरी खेचरी मुद्रा में उनको महारथ हासिल थी, जिसके कारण बाबा आवागमन करते थे, हालांकि बाबा को किसी ने आते-जाते नहीं देखा। खेचरी मुद्रा से ही बाबा अपनी भूख व उम्र पर नियंत्रण करते थे।
बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्‍य द्रष्टि की सिद्धि प्राप्‍त थी, बाबा बिना कुछ कहे-सुने ही अपने भक्‍तों की समस्‍याओं और उनके मन में चल रही बातों को जान लिया करते थे। उनकी याददास्‍त इतनी अच्‍छी थी कि दसकों बाद भी किसी व्‍यक्ति से मिलते थे तो उसके पूरे घर की जानकारी और इतिहास बता दिया करते थे।
बाबा हठ योग की दसों मुद्राओं में पारंगत थे। साथ ही ध्‍यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायम, त्राटक, ध्‍यान, धारणा, समाधि आदि पद्धतियों का भरपूर ज्ञान था, जिससे बड़े-बड़े विद्वान उनके योग ज्ञान के सामने नतमस्‍तक हो जाया करते थे उनके कुछ भक्‍त बताते हैं कि बाबा हमेशा एक जैसे रहे एक इंसान जो बाबा से कई वर्ष पहले मिलने आया था और वही इंसान कई वर्ष बाद जब बाबा से मिलने जाता था तो देखता था कि बाबा कई साल पहले जैसे थे, वैसे ही आज हैं। उनकी उम्र नहीं बढ़ती थी।
देवरहा बाबा के प्रवचन-

देवरहा बाबा भगवान राम के भक्‍त थे। देवरहा बाबा के मुख से हमेशा राम नाम निकलता था। बाबा भक्‍तों को राममंत्र की दीक्षा दिया करते थे। उनका कहना था कि

‘एक लकड़ी हृदय को मानो, दूसर राम नाम पहिचानो

राम नाम नित उर पे मारो, ब्रम्‍हा दिखे संशय न जानो।’
देवरहा बाबा प्रभु श्री राम और श्री कृष्‍ण को एक मानते थे और भक्‍तों को कष्‍ट से मुक्ति के लिए कृष्‍ण मंत्र भी देते थे।
‘*उं कृष्‍णाय वासुदेवाय हरये परमात्‍मने*
*प्रणत: क्‍लेश नाशाय गोविंदाय नमो नम:।‘*
बाबा का कहना था कि जीवन को पवित्र बनाये बिना ईमानदारी, सात्विकता, सरसता के बिना भगवान नहीं मिलते। इसलिए सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध व पवित्र बनाओ,,,
बाबा वैसे तो कोई नियमित प्रवचन नहीं करते थे, लेकिन एक बार तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ के अवसर पर सन 1889 में विश्‍व हिन्‍दु परिषद के मंच से संदेश दिया-

कि ‘दिव्‍य भूमि भारत की समृद्धि, गौरक्षा व गौसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गौह त्‍या का कलंक मिटाना अतिआवश्‍यक है।’
बाबा गौसेवा व गौरक्षा के पुरजोर समर्थक थे। ऐसे ही उन्‍होंने श्री राम मंदिर के लिए भविष्‍यवाणी की थी जो अंततोगत्‍वा सच साबित हुयी,,,,
देवरहा बाबा के भक्‍त-

बात की जाये बाबा के भक्‍तों की तो देश दुनिया के लाखों ऐसे भक्‍त है, जिनका नाम लेना संभव नहीं है,लेकिन कुछ ऐसे भक्‍त हैं जिनके बारे में आप अच्‍छी तरह से जानते होंगे।
ब्रिटिस शासक जार्ज पंचम 1911 में जब भारत आया था तो वो बाबा से मिलने देवरिया गया था।

पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधान मंत्री लेाल बहादुर शास्‍त्री, इंदिरा गॉधी, राजीव गॉधी,

अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व ग्रह मंत्री भूटा सिंह जैसी महान राजनीतिक हस्तियॉ उनके भक्‍त थे।
लेकिन इन सब में जो बाबा के सबसे निकट भक्‍त थे उनका नाम था मार्कण्‍डेय महाराज। जिन्‍होंने बाबा की लगभग 10 साल सेवा की।

इसके अतिरिक्‍त फिल्‍मी दुनिया की कई नामचीन हस्‍तियॉ और बड़े-बड़े अधिकारी भी बाबा की भक्‍त रहे हैं, जो समय-समय पर बाबा से आशीर्वाद लेने जाया करते थे।
देवरहा बाबा के चमत्‍कार-

बाबा तो हर पल हर क्षण चमत्‍कार किया करते थे, लेकिन कुछ प्रसिद्ध चमत्‍कार आपके लिए प्रस्‍तुत कर रहा हॅू-

देश के प्रथम राष्‍ट्रपति डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद के कथनानुसार जब वे बचपन में अपने माता पिता के साथ बाबाजी के दर्शन करने गये थे तो बाबा देखते ही बोल पड़े कि यह बच्‍चा तो राजा बनेगा,
तो डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद राष्‍ट्रपति बनने के बाद बाबा को पत्र लिखकर धन्‍यवाद कहा और वर्ष 1954 में प्रयाग राज के कुंभ में बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया था।

एक बड़ी ही रोचक घटना है इेलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने जो बाबा के भक्‍त थे दावा किया था कि बाबा अपने शरीर त्‍यागने का समय 05 वर्ष पहले ही बता दिया था देश में आपातकाल के बाद चुनाव हुये तो इंदिरा गॉधी हार गयी थी और उनकी जमानत जप्‍त हो गयी थी, जिसके बाद इंदिरा गॉधी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गयी-
और उनसे कहा कि हमारी पार्टी का चुनाव चिन्ह बाबा जी बतायें तब बाब ने हाथ उठाकर इंदिरा जी को आशीर्वाद दिया था और उसके बाद इंदिरा गांधी ने हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव चिन्‍ह रखा। उसके बाद इंदिरा गॉधी को देश में प्रचंड बहुमत प्राप्‍त हुआ था और वे प्रधानमंत्री बनी थी।
बाबा का निर्जीव वस्‍तुओं पर नियंत्रण था और बाबा पेड़-पौधों से बातें किया करते थे।उनके आश्रम में बबूल के पेड़ लगे हुये थे, लेकिन उनमें कांटे नहीं होते थे और तो और उनके आश्रम में लगे बबूल के पेड़ खुशबू भी बिखेरते थे।
राजीव गॉधी बाबा के बहुत बड़े भक्‍त थे। एक बार राजीव गॉधी बाबा का आर्शीवाद लेने उनके आश्रम आना चाहते थे, जिसकी उनके अधिकारियों ने विधिवत योजना तैयार की राजीव गॉधी के आने से पहले उनके अधिकारी सुरक्षा का जायजा लेने बाबा के आश्रम आये तो आश्रम के पास एक ऐसा बबूल का पेड़ था,जिसे सुरक्षा कारणों से काटना अति आवश्‍यक था, जब बाबा को इस बारे में पता चला तो उन्‍होंने अधिकारियों को बुलाकर कहा कि यह मेरा मित्र है मैं इससे बातें करता हॅू, इस बेचारे का क्‍या दोष है जो इसे काटा जा रहा हैइस पेड़ को मत काटो जाओ तुम्‍हारे प्रधानमंत्री का दौरा रद्द हो जायेगा और यह कहने के कुछ देर बाद ही वहॉ मौजूद अधिकारियों को सूचना प्राप्‍त हुयी कि प्रधानमंत्री राजीव गॉधी का दौरा रद्द हो गया हैउसके बाद सारे अधिकारी बाबा को प्रणाम करके वापस चले गये।
बाबा का प्रसाद देने का तरीका बहुत ही अचंभित कर देने वाला होता था। जब भी कोई भक्‍त, बाबा से प्रसाद की मांग करता तो बाबा अपने मचान पर बैठे-बैठे ही मचान की खाली जगह पर हाथ रख देते थे तो कुछ देर बाद बाबा की मुट्ठी में मिठाई, फल या मेवा आदि अपने आप ही आ जाया करते थे, जिसे बाबा अपने भक्‍तों में बांट दिया करते थे।
देवरहा बाबा की महासमाधि

बाबा अपने शरीरिक जीवन के अंतिम दिनों में मथुरा चले गये थे और अंत समय तक वही निवासरत रहेभक्‍त बताते हैं कि संवत् 2047 की योगिनी एकादशी यानी 19 जून सन् 1990 मंगलवार के दिन अचानक प्रकृति ने अपना स्‍वभाव बदलना शुरू कर दिया,
पशु पक्षी व्‍याकुल होकर तरह-तरह की आवाजें करने लगे, आसमान में काले बादल कुछ इस प्रकार से छा गये कि दिन में ही रात हो गयी और जोरदार बारिश होने लगी,क्‍योंकि अब समय आ गया था कि एक महान योगी और तपस्‍वी इस मृत्‍यु लोक से विदा लेकर अपने परमात्‍मा में लीन हो जाये और उसी समय योगीराज परमहंस देवरहा बाबा ने जल समाधि ले ली। बाबा ने भले ही अपने शरीर का त्‍याग कर दिया हो, परंतु यह ध्‍यान रहे कि ऐसे महान तपस्‍वी अमर होते हैं जो कभी अपने भक्‍तों को छोड़कर नहीं जाते हैं,वे अपने भक्‍तों पर अपनी दया दृष्टि हमेशा बनाये रखते है, क्‍योंकि उनके जल समाधि लेने के बाद भी कई भक्‍तों को बाबा की अनुभूति हुयी है।
देवरहा बाबा का आश्रम पता 👇

ब्रम्‍हर्षि योगिराज देवरहा बाबा मंच आश्रम, मईल, जिला देवरिया, उत्‍तर प्रदेश

Wednesday, 29 March 2023

श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी


 ये वो हनुमान थे जिसने कलयुग में सनातन धर्म की जड़ो को फिर से सींचने का काम किया। स्व. श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी जिन्होंने #गीता_प्रेस_गोरखपुर की स्थापना की ओर कलयुग में सनातन हिन्दुओ के घर घर मे वैदिक धर्म ग्रंथों, शास्त्रौ को पहुचाने का काम किया। आज हिन्दुओ के घर मे जो सनातन शास्त्र पहुच रहे है वो स्व श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की देन है। वास्तव में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी हनुमान ही थे जब हिन्दू समाज अपने ज्ञान , विज्ञान, गौरव को भुल अंग्रेजी सभ्यता का दास बन रहा था, तब इन्होंने हनुमान की भांति संजीवनी रुपी #गीता_प्रेस_गोरखपुर (सनातन शक्तिपुंज) की स्थापना कर जो सनातनियों को जड़ से जोड़े रखने का भगीरथी प्रयास किया । उसके लिए हिन्दू समाज हमेशा इनका ऋणी रहेगा। ऐसे धर्मरक्षक महावीरो को नई पीढ़ी द्वारा भूलना सिर्फ गलती नही महापाप होगा। इन लोगो ने अभावो में रहकर भी कैसे संस्थान खड़े किए होंगे जो सम्पूर्ण विश्व मे वैदिक धर्म ग्रंथ शास्त्र पहुचाने वाले सबसे बडे हिन्दू संस्थान बनकर उभरे। न पैसा न संसाधन फिर भी हिंदू समाज की आने वाली पीढ़ियों तक शास्त्रो का अमर ज्ञान पहुचाने के लिए अपना सबकुछ वार दिया। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे महापुरुषों के द्वारा ही वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ज्ञान पहुंचाने वाली ऋषि परम्परा जीवित है। जो समाज अपने इतिहास और महापुरुषों को भुल जाते है वो समाज कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है , इसलिए हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे धर्म रक्षक धर्मात्माओ को कभी मत भूलो ये ही सनातन धर्म के इस अक्षय वृक्ष की जड़ है। कोटि कोटि नमन 🙏🙏

Friday, 2 September 2022

जातिवाद और हम भारतीय

 भारत मे कभी छुआछुत था रहा ही नहीं प्राचीन समय से ना जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।

चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं। 


सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।


सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?


महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।


विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।


भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।


श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे, 


उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।


यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।


राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।


उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे


तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।


वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।


प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे । 


नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।


उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।


फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।


केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।


फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।


अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।


अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। 


मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।


यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।


मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।


1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। 


अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।


इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।


योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।


और भी बहुत से प्रमाण है जो हमें जाति में नही ज्ञान विज्ञान में तेज़ और भारतीय होने का गौरव बढ़ाती हैं 


इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं।

Thursday, 31 March 2022

गांधी जी और बकरी का दुध

 


अंग्रेजी में एक शब्द है "एक्सपेंसिव पावर्टी" इसका मतलब होता है कि गरीब दिखने के लिए आपको बहुत खर्चा करना पड़ता है। गांधी की गरीबी ऐसी ही थी।


एक बार सरोजनी नायडू ने उनको मज़ाक में कहा भी था कि "आप को गरीब रखना हमको बहुत महंगा पड़ता है!!"


ऐसा क्यों?


गांधी जब भी तीसरे दर्जे में रेल सफर करते थे तो वह सामान्य तीसरा दर्जा नहीं होता था।


 अंग्रेज नहीं चाहते थे की गांधी की खराब हालातों में, भीड़ में यात्रा करती हुई तस्वीरें अखबारों में छपे उनको विक्टिम कार्ड का फायदा मिले। इसलिए जबकि वह रेल सफर करते थे तो उनको विशेष ट्रेन देते थे जिसमें कुल 3 डिब्बे होते थे जो सिर्फ गांधी और उनके साथियों के लिए होते थे, क्योंकि हर स्टेशन पर लोग उनसे मिलने आते थे।


इस सब का खर्चा बाद में गांधी के ट्रस्ट की ओर से अंग्रेज सरकार को दे दिया जाता था। इसीलिए एक बार मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था की जितने पैसो में मैं प्रथम श्रेणी यात्रा करता हूं उस से कई गुना में गांधी तृतीय श्रेणी की यात्रा करते हैं।


गांधी ने प्रण लिया था कि वह सिर्फ बकरी का दूध पिएंगे। बकरी का दूध आज भी महंगा मिलता है तब भी महंगा ही था। अपने आश्रम में तो बकरी पाल सकते थे, पर गांधी तो बहुत घूमते थे।ज़रूरी नही की हर जगह बकरी का दूध आसानी से मिलता ही हो। इस बात के वर्णन खुद गांधी की किताबों में है कैसे लंदन में बकरी का दूध ढूंढा जाता था, महंगे दामों में खरीदा जाता था क्योंकि गांधी गरीब थे,वो सिर्फ बकरी का दूध ही पीते थे। ये बात अलग है कि खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि गांधी ने दूध के लिए जो बकरियां पाली थी,उनको रोज़ साबुन से नहलाया जाता था, उनको प्रोटीन खिलाये जाते थे। उनपर 20 रुपये प्रतिदिन का खर्च होता था। 90 साल पहले 20 रुपये मतलब आज हज़ारों रुपये !!


बाकी खर्च का तो ऐसा है कि गांधी अपने साथ एक दानपात्र रखते थे जिसमें वह सभी से कुछ न कुछ धनराशि डालने का अनुरोध करते थे। इसके अलावा कई उद्योगपति उनके मित्र उनको चंदा देते थे। उनका एक ट्रस्ट था जो गांधी के नाम पर चंदा इकट्ठा करता था। उनके 75 वें जन्मदिन पर 75 लाख रुपए का चंदा जमा करने का लक्ष्य था, पर एक करोड़ से ज्यादा जमा हुए।सोने के भाव के हिसाब से तुलना करें तो आज के 650 करोड़ रुपये हुए।


गांधी उतने गरीब भी नहीं थे,जितना बताया जाता है।

Friday, 4 March 2022

सम्राट अशोक महान क्यों नहीं

 


सम्राट अशोक की जन्म जयंती हमारे देश में नहीं मनाई जाती ?


बहुत सोचने पर भी उत्तर नहीं मिलता! आप भी इन प्रश्नों पर विचार करें!


१. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं;


*२. जिस सम्राट का राज चिन्ह "अशोक चक्र" भारतीय अपने ध्वज में लगते है;*


*३. जिस सम्राट का राज चिन्ह "चारमुखी शेर" को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाते हैं, और "सत्यमेव जयते" को अपनाया है;*


*४. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर "अशोक चक्र" दिया जाता है;*


*५. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो;*


*६. सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे! इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे;*


*७. जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं !*


*८. जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी;*


*९. जिस सम्राट के शासन काल में सबसे प्रख्यात महामार्ग "ग्रेड ट्रंक रोड" जैसे कई हाईवे बने, २,००० किलोमीटर लंबी पूरी सडक पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायीं गईं, मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए, पशुओं को मारना बंद करा दिया गया;*


*१०. ऐसे महान सम्राट अशोक, जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है ?* 


*दुख: है कि जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं, और जो जानते हैं वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते;*


*तथ्य निम्नलिखित हैं:~*


*जन्म 4 मार्च* 

*जन्म वर्ष ३०२ ई पू* 

*राजतिलक - २६८ ई पू* 

*देहावसान - २३२ ई पू* 

*पिताजी का नाम - बिन्दुसार* 

*माताजी का नाम - सुभद्राणी*


*११. "जो जीता वही चंद्रगुप्त" ना होकर "जो जीता वही सिकन्दर" कैसे हो गया…?*


*जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था! बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था! और वापस लौटना पड़ा था !*


*कृपया अपने सभी समुहों में भेजने का कष्ट करें और हम सब मिल कर बाक़ी साथियों को भी जागरूक करें!*

 

*आइए मिल कर इस ऐतिहासिक भूल को सही करने का हर संभव प्रयास करें ..*


*प्रयास करें कि अपने संस्थान में आगामी 4 मार्च सम्राट अशोक* 

*जन्मदिन के रूप में सम्मान व उत्साह के साथ मनाया जाए !*

Tuesday, 4 January 2022

ब्राह्मण वंशावली (गोत्र प्रवर परिचय)


 ब्राह्मणों की वंशावली

 ज्ञान वर्षा

सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है।


काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं। एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए। सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : गर्ग (शुक्ल- वंश) गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|


(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं। उपगर्ग (शुक्ल-वंश): उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|


(१)बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। गौतम (मिश्र-वंश): गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|


(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। उप गौतम (मिश्र-वंश): उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|


(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है। वत्स गोत्र (मिश्र- वंश): *वत्स ऋषि* के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|


(१) गाना (२) *पयासी* (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है। कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश): तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है।


(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी वशिष्ठ गोत्र (मिश्र-वंश): इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है। (१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश) शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं। (१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है।


इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है। उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश): इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं।


(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश): भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है| (१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर। भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश): भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|


(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें। सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है। सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश) सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|


(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी) सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश) सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|

महान ऋषि पिप्पलाद

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेवाला' (पिप्पल...